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प्रमाण-नय-स्वरूप | २८३ अवर्ण (अमूर्त) है, जबकि व्यवहारनय की दृष्टि से सवर्ण (मूर्त) है। जीव वस्तुतः अमूर्त होने से वर्णयुक्त नहीं होता, यह वास्तविक सत्य है। शरीरधारी जीव कथंचित् मूत (शरीर मूत होने से) होता है, जीव उससे कथंचित् अभिन्न है, इसलिए वह सवर्ण भी है, यह औपचारिक सत्य है। ___'भौंरा पांचों वर्गों का है' यह पूर्ण तथ्योक्ति है, क्योंकि भौंरे का कोई का कोई भाग श्याम, कोई भाग लाल, नोला, हरा, श्वेत आदि विभिन्न रंगों वाला होता है।
निश्चय की दष्टि साध्य की ओर और व्यवहार की दष्टि साधन की ओर होती है। इन दोनों दृष्टियों के मेल से ही कार्य सिद्धि होती है । निश्चय को एकान्तरूप से मानने और व्यवहार का लोप करने पर सभी धार्मिक क्रियाएँ, धर्मानुष्ठान, धर्मसंघ-व्यवस्था आदि निरर्थक सिद्ध होती हैं और निश्चय का लोप करके केवल व्यवहार को ही मानने पर परमार्थ की प्राप्ति नहीं होती और कार्यसिद्धि असम्भव है। .. नय के अन्य प्रकार से भी वर्ग किये जा सकते हैं। जैसे-जाननय . और क्रियानय । जो ज्ञान को मुक्ति का साधन रूप माने, वह जाननय और जो क्रिया को मुक्ति का साधन रूप माने वह क्रियानय । - अभिप्राय व्यक्त करने के साधन दो हैं--(१) अर्थ और (२) शब्द । इनके आधार पर नय के दो विभाग होते हैं--अर्थनय और शन्दनय । अर्थ के दो प्रकार हैं -सामान्य और विशेष । इसके आधार पर नय के चार विभाग होते हैं---नंगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र।।
(१) नैगमनय-निगम अर्थात् लोक। उसके व्यवहार का अनुसरण करने वाला नय नैगम । अथवा जो वस्तु को सामान्य-विशेषरूप अनेक प्रमाणों से माने-ग्रहण करे वह नैगम । या जिसके जानने का एक 'गम'बोधमार्ग नहीं, अनेक गम हैं, वह नैगम है ।
नैगमनय सर्ववस्तुओं को सामान्य और विशेष दोनों धर्मों से युक्त मानता है। उसका कहना है--विशेष के बिना सामान्य नहीं होता तथा सामान्य के बिना विशेष नहीं होता, फिर भी यह नय सामान्य और विशेष दोनों धर्मों को परस्पर सर्वथा भिन्न मानता है। अतः यह प्रमाणज्ञानरूप नहीं बनता।
नैगमनय के उदाहरण-किसी मनुष्य से पूछा जाए कि तुम कहाँ रहते हो? इस पर वह कहता है- 'लोक में ।'