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प्रज्ञापुम्ष ओचोर्यश्री आत्माराम जी महाराज
[ संक्षिप्त परिचय ]
युगपुरुष का शाश्वत व्यक्तित्व
युग-पुरुष अपने युग की विचार-क्रान्ति का साधिकार प्रतिनिधित्व करता है । उसका समग्र जीवन, जन चेतना के अभ्युत्थान के लिए होता है । वस्तुतः उसकी अपनी जो भी कुछ विभूति है, वह उसकी अपनी न होकर जन-चेतना के प्राण-प्राण में वितरित हो जाती है । जब युग-पुरुष अपना समस्त जीवन-वैभव जनता-जनार्दन को समर्पित कर देता है, तब युग की जन-चेतना अपने मानस के सारभूत तत्त्व को श्रद्धा और भक्ति के नाम पर उस युग-पुरुष के चरणों में अर्पित करके उसके जीवन का अनुकरण और अनुसरण करने लगती है।
युग-पुरुष का जीवन जब जन-जन की चेतना में प्रतिबिम्बित हो जाता हैतब उसके विचार युग विचार हो जाते हैं । उसकी वाणी युग-वाणी हो जाती है । उसका कर्म युग-कर्म हो जाता है । युग-पुरुष, वस्तुतः अपने युग की क्रान्तियों का केन्द्र होता है । जन-जागरण का क्रान्तिदूत बन जाता है ।
___ श्रद्धेय चरण, आचार्य प्रवर श्री आत्माराम जी महाराज स्थानकवासी जैन समाज के ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जैन समाज के एक युग-पुरुष थे। उस युग-पुरुष के विचार आज भी समाज को आलोक प्रदान कर रहे हैं। उनकी वाणी, आज भी भक्तों के हृदयाकाश में प्रतिध्वनित हो रही है। उनका कर्म, आज भी समाज को विकास तथा प्रगति का दिव्य संदेश दे रहा है।
__आचार्य श्री क्या थे, कहना सरल न होगा। किसी भी युग-पुरुष को शब्दों में बाँधना उतना सहज नहीं है, जितना समझ लिया जाता है । युग-पुरुष की जीवनधारा का वेग शब्दों की परिसीमा से परे, बहुत परे होता है। हम बौने लोग उनकी ऊँचाई को कैसे ना ? और उनकी गरिमा को कैसे तोलें ? महापुरुषों की जीवन महिमा की नाप और तौल नहीं की जा सकती है । वे अपने तुल्य आप ही होते हैं । उनकी तुलना एवं उपमा नहीं हो सकती।
पर, मैं पूछता हूँ-आचार्य श्री क्या नहीं थे? वे विचार में आचार थे, और आचार में विचार थे । वे एक होकर भी अनेक थे, और अनेक होकर भी एक थे। वे व्यक्ति होकर भी समाज थे, और समाज होकर भी व्यक्ति थे । वे विरोध में अविरोध थे, और अविरोध में भी विरोध थे। उनमें जैन धर्म, दर्शन और संस्कृति साकार