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________________ २७६ अमरदीप तो न मोक्ष चाहिए और न स्वर्ग । हमारे पास पर्याप्त धन हो, बंगला, कोठी, हो, कार हो, स्त्री- पुत्र सुखी हों, वस यही हमें पर्याप्त है । आज अधिकतर लोग इहलौकिक ऋद्धि-सिद्धि प्रसिद्धि के लक्ष्य वाले मिलेंगे, जो अपने लक्ष्य को अत्यन्त क्षुद्र बना लेते हैं । परन्तु याद रखिये अपने लक्ष्य को इतना छोटा बनाने वाले लोग स्वार्थी, अपने ही तुच्छ हित के लिए प्रपंच करने वाले, अनुदार और अन्त में दुःखी बन जाते हैं । इसीलिए सोम अर्हषि साधक को अपने लक्ष्य को क्षुद्र नहीं, विराट बनाने का निर्देश कर रहे हैं, जिसमें स्वार्थ, अनुदारता, संकीर्णता, हृदय की तुच्छता आदि न हों । मुझे एक रोचक दृष्टान्त याद आ रहा है- जो इस तथ्य को समझने में उपयोगी होगा । एक राजा के कोई सन्तान नहीं थी। राजा और रानी दोनों चिन्तित रहा करते थे कि पुत्र के बिना हमारा राज्य कौन संभालेगा, अराजकता छा जाएगी। राजा को रह-रहकर यह चिन्ता सता रही थी। एक दिन राजा निश्चय करके घोर जंगल में निकल गया, अपने इष्टदेव से पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना करने । राजा एकाग्रचित्त होकर ध्यान में बैठ गया । कार्यं वा साधयेयम्, देहं वा पातयेयम्', ऐसा संकल्प मन में कर लिया। राजा ने ज्यों ही आँखें खोलीं, सामने वाले एक पेड़ के नीचे एक छोटे-से शिशु को लेटा हुआ देखा ! राजा पहले तो आश्चर्यचकित हो गया । उसने सोचा कि इस निर्जन वन में, यह अकेला शिशु - कैसे आ गया ? इसके पास इसकी मां या कोई अभिभावक भी नहीं है । फिर विचार आया कि मेरी प्रार्थना के प्रभाव से शायद मेरे भाग्य से ही यह शिशु यहाँ आ गया हो । राजा ने उस बालक को गोद में ले लिया और मन ही मन यह संकल्प किया कि मैं चुपचाप इस बालक को अन्तःपुर में जाकर रानी को सौंप दूँगा, उसे अपने औरस पुत्र की तरह इसका पालन करने का कहूंगा । जब यह कुछ बड़ा हो जाएगा तो इसे राजकुमार के समान समस्त शिक्षाएँ दिलाएँगे । जब विवाह योग्य हो जाएगा तो किसी योग्य राजकुमारी के साथ इसका विवाह कर देंगे । फिर सारा राज्य इसे सौंप कर हम वन में जाकर साधना करेंगे। राजा उस बच्चे को लेकर सीधा राजमहल में पहुंचा और रानी को सौंपते हुए कहा -- प्रिये ! लो, तुम्हारे लिये यह बालक लाया हूं, इसका पुत्रवत् पालन करना । राजा ने अपना मनोरथ भी दोहरा दिया। रानी भी राजा के मनोरथ से सहमत होकर उस बालक का पुत्रवत् पालन करने लगी । वह बालक भी स्वयं को
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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