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________________ २४६ अमरदीप कज्ज-णिवत्ति-पाओग्गं, आदेयं वज्जकारणं । मोक्ख-णिवत्ति-पाओग, विण्णेय तु विसेसओ ॥२४॥ अर्थात्- आरम्भ (हिंसात्मक कार्य) सार्थक भी होता है, निरर्थक भी । प्रतिहस्ती के लिए हाथी कभी तट को भी तोड़ देता है ॥१८॥ जो जिस कार्य के लिए योग्य हो, वही उस कार्य को करे, किन्तु जिस कार्य को करने में जिसका सामर्थ्य (या विश्वास नहीं है, वह उस कार्य को उसी प्रकार छोड़ देता है, जिस प्रकार कामी पुरुष नग्नत्व और मुण्डत्व को छोड़ देता है । १६॥ किसी कार्य की निष्पत्ति (रचना) के लिए उचित कारण अपेक्षित है, जबकि मोक्ष की निष्पत्ति के लिए तो विशेष कारण अपेक्षित है ।।२४।। जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाने वाला आरम्भ सार्थक आरम्भ है - अर्थ दण्ड है; किन्तु जहाँ मनोरंजन आदि के लिए दूसरे प्राणी का उत्पीड़न किया जाता है, वहाँ निरर्थक हिंसा (आरम्भ)-अनर्थदण्ड है । अपध्यान, उपेक्षा और प्रमाद के द्वारा होने वाली हिंसा तथा आवश्यकता से अधिक संग्रह आदि अनर्थदण्ड हैं। अहिंसा का पूर्ण उपासक मुनि तो सार्थक और अनर्थक सभी आरम्भों से विरत रहता है, किन्तु जो स्थूल हिंसा-त्यागी श्रावक है, वह साथक आरम्भ से बच नहीं सकता । अतएव उसके लिए यहां कहा गया है कि वह निरर्थक आरम्भजा हिंसा से बचे । गृहस्थ जीवन का दायित्व निभाते हुए कभी-कभी श्रावक को अन्याय के प्रतीकार के लिए आततायी को दण्ड देना पड़ता है। ऐसे मौके पर वह विरोधी का प्रतीकार करने के लिए हिंसा का आश्रय लेता है तो वह अपनी मर्यादा का भग नहीं करता। उसके निरपराध व्यक्तियों को द्वेषबुद्धि से मारने का त्याग होता है, किन्तु अपराधी को दण्ड देने के लिए वह खुला है। यदि वह अपने इस कर्तव्य से भागता है तो उसकी यह कायरता है, जो मानसिक हिसा का एक प्रकार है । निष्कर्ष यह है कि श्रावक को आत्मनिष्ठ सुख के लिए महारम्भ से हटकर अल्पारम्भ से जीने की कला सीखनी चाहिए। साथ ही साधक को अपने बल, उत्साह और साहस के अनुरूप कार्य का चुनाव करना चाहिए। महत्त्वाकांक्षाएँ हों, किन्तु वे अपनी शक्ति और कार्यक्षमता से सन्तुलित हों । पत्थर उठाने की ताकत न हो और पहाड़ उठाने चल पड़े तो परिणाम में निराशा ही मिलेगी। अतः प्रत्येक कार्य के
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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