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अमरदीप
रख दिये । चार साल का नन्हा मुन्ना आया और उसने खेल-खेल में ही नोट उठा लिये और जलते चूल्हे में डाल दिये । उसकी माँ चिल्लाई, झपट कर नोट निकालने को हुई पर नोट राख हो गए। पति ने नोटों की राख देखी तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया । उसने क्रोधावेश में आकर बालक को उठाया और चूल्हे में झोंक दिया। वह रोया-चिल्लाया। माँ ने उसे बाहर निकाला, तब तक आग ने उसका काम तमाम कर दिया। पिता जेल में गया, मां वियोग में खूब रोई। परन्तु अब क्या हो सकता था ? पिता के एक क्षण के क्रोधावेश ने कितने मनोरथों के बाद हुए अपने लाड़ले को खो दिया।
एक जलता हुआ कोयला खुद को जलाता है और उसके निकट जो भी आता है, उसे भी जलाता है । वह जहाँ भी पहुँचता है, वहाँ जो भी उसके निकट आता है, उसे जलाता है । क्रोध की आग भी स्व और पर दोनों को जलाती है। क्रोध की आग में जलता हुआ व्यक्ति अपने सम्पर्क में आने वाले सबकी शान्ति भंग कर देता है । क्रोधित व्यक्ति अपने धर्म, अर्थ और काम तीनों की हानि कर बैठता है । वह क्रोधावेश में आकर कीमती चीजों को तोड़-फोड़ देता है, मोटर, बस आदि को फूक देता है, राष्ट्रीय संपत्ति जला डालता है, तोड़फोड़ और दंगा करता है । क्रोध से भयंकर वरपरम्परा बढ़ती है । आत्मा नरक आदि अधोगति का मेहमान बनता है।
क्रोध का शैतान जब मानव के दिमाग में प्रविष्ट हो जाता है तो उसकी आंखें मुद.जाती हैं और ओठ खुल जाते हैं। उस समय वह न तो माता को देखता है, न पिता को, और न गुरु को । वह साधु को भी अपमानित कर बैठता है। राजा और देवता का भी क्रोधी तिरस्कार कर बैठता है ।
क्रोध अनेक प्रकार की विपत्तियों को न्यौता देता है । क्रोध में धन और जन दोनों की हानि है। क्रोधावेश में आकर बहुत-से युवक घर से भाग कर चले जाते हैं, कई महिलाएं आत्महत्या कर बैठती हैं। वर्षों की जमीजमाई नौकरी क्रोध के कारण एक दिन में समाप्त हो जाती है और उफान शान्त होने पर फिर वह नौकरी के लिए चक्कर लगाता है। मनुष्य समझता है कि मैं क्रोध से काम निकाल लूगा, पर क्रोध से काम बनते नहीं, बिगड़ते जरूर हैं । अपने प्रिय स्वजन पर क्रोध करने से वह घर छोड़कर सदा के लिए चला जाता है । इस प्रकार प्रिय-वियोग, धन-जन का नाश, और जन्ममरण क्रोध के साथ लगे हुए हैं ।