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________________ क्रोध की अग्नि : क्षमा का जल २२७ क्रोध से आत्मा स्व और पर दोनों को जलाता है; अर्थ, धर्म और काम को भी जला डालता है। क्रोध तीव्र वैर भी कराता है। वस्तुतः क्रोध में आत्मा अधोगति प्राप्त करता है ॥१३॥ __ क्रोधाविष्ट प्राणी माता-पिता और गुरु को भी नहीं मानते । वे साधु, राजा या देवताओं का भी अपमान कर बैठते हैं ।।१४॥ क्रोध धनहानि और बन्धनों का मूल है। प्रिय-वियोग और अनेक जन्म-मरणों का मूल भी यही है ॥१५॥ क्रोध भयंकर जहरीले साँप के समान है। ऐसा सांप अहंकार के आवेश में आकर किसी वक्ष को डसता है, लेकिन परिणाम उसे शून्य मिलता है, इससे वह और भी क्रोधित हो उठता है। मगर बाद में तो उसकी विषशक्ति भी नष्ट हो जाती है । अब उसे हर कोई सता सकता है । यही हाल उस तपस्वी साधक का होता है जो जब तब कुपित होकर दूसरे को भस्म करने के लिए क्रोध का उपयोग करता है तो उसका तप और तेज, दोनों समाप्त हो जाते हैं। - गोशालक ने भगवान महावीर को भस्म करने के लिए तेजोलेश्या का प्रयोग किया। परिणाम यह आया कि वह वर्षों की साधना से अजित तपःशक्ति खो बैठा। इतना ही नहीं, प्रत्युत उस तेजःशक्ति ने उसी पर प्रत्याक्रमण करके भयंकर दाह ज्वर से उसे अशान्त कर डाला, वह तपःतेज से हीन हो गया। क्रोध के प्रारम्भ में मनुष्य अपने में शक्ति से दस गुना बल का अनुभव करता है, किन्तु उसके चले जाने पर शिथिलता महसूस करता है, मानो नशा उतर गया हो। प्रसिद्ध दार्शनिक 'सौना' ने कहा था-'क्रोध में पहले जोश होता है। शक्ति की अधिकता महसूस होती है, परन्तु उसकी खुमारी उतर जाने पर मनुष्य शराबी भाँति कमजोर हो जाता है।' एक वैज्ञानिक ने यह सिद्ध कर बताया है कि पन्द्रह मिनट के क्रोध से शरीर की उतनी शक्ति क्षीण हो जाती है, जितनी कि नौ घंटे कड़ी मेहनत के बाद होतो।। __ वर्षों की महान कष्टसाधना से अजित तपोराशि को क्रोधरूपी आग क्षण भर में भस्म कर डालती है। एक मजदूर धूप और भूख की मार सहकर महीने के अन्त में तीस रुपये घर लेकर आया । पत्नी के हाथों में नोट थमाये और स्नान करने चला गया। पत्नी भोजन बनाने के काम में व्यस्त थी। नोट उसने पास में ही
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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