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२२४ अमरदीप
अग्नि सर्वभक्षी कहलाती है, फिर भी उसकी शक्ति सीमित है, क्रोधाग्नि की शक्ति तो उससे भी अधिक है ।
अग्नि निकटवर्ती को ही जलाती है, किन्तु क्रोधाग्नि तो निकट और दूरवर्ती सबको जला देती है ।
afia की गति सीमित है, जबकि क्रोध की गति असीम है। पानी के निकट पहुंचते की आग की गति रुक जाती है, किन्तु क्रोध की आग को संसार के सारे समुद्र भी मिलकर नहीं बुझा सकते । द्रव्य अग्नि को ती एक बाल्टी पानी से बुझाया जा सकता है; परन्तु भावाग्नि रूप क्रोध जिसमें तन-मन दोनों जल रहे हैं, उस आग में सारा परिवार, समाज और राष्ट्र झुलस रहा है, विश्व तक में उसकी ज्वाला भड़क उठती है, उस क्रोधाग्नि पर बाल्टी भर पानी डाल दिया जाय तो क्या परिणाम आता है ? वह आग - और अधिक भड़क उठती है ।
द्रव्य अग्नि तो एक ही भव को जलाती है और जलने वाला भी उपचार के द्वारा स्वस्थ होकर शान्ति का अनुभव करता है, परन्तु क्रोधाग्नि तो न यहाँ शान्त होती है, न वहाँ । इस जन्म की क्रोध की ज्वाला जन्मजन्म तक साथ जाती है ।
आग का जला हुआ आदमी मरहम चाहता है, किन्तु क्रोध से जला हुआ मानव पुनः उसी ज्वाला के पास पहुंचता है । कितना अज्ञान है उस आत्मा में ! जिस चीज को उसने सौ-सौ बार जाँचा, देखा, उसकी असफलता पर पछताया फिर उसी का विश्वास करता है ।
जीवन में सौ-सौ बार उसने क्रोध का उपयोग किया, पर क्षमा का उपयोग करने में लाचारी बताई । क्षमा के गीत गाए, क्षमाश्रमणों के जयनाद से आकाश गू जाया; क्षमा पर बड़े-बड़े भाषण दिये, बड़े-बड़े ग्रन्थ रचे, लेकिन समस्या को सुलझाने के लिए जब क्षमा सामने आई तो उसे बाहर धकेल दिया, और क्रोध को ही भीतर बुला लिया । क्षमा उसके इस व्यवहार पर सिसकती है और क्रोध मुस्कराता है कि मुझे लाख दुत्कोरा, पर अब तुम पर मेरा ही शासन है । अतः क्रोधाग्नि से जला हुआ मानव क्षमा को न चाहकर क्रोध को ही पुनः अपनाता हैं, क्योंकि उसके दिल से अभी तक शैतान गया नहीं । क्रोध को छोड़ने को कोई कहेगा तो वह कदापि छोड़ने को तैयार नहीं होगा ।
क्रोध को छोड़ना दुष्कर क्यों ?
मनुष्य क्षमा का महत्त्व जानता हुआ क्रोध को क्यों नहीं छोड़ पाता । इसके लिए तारायण अर्हतषि कहते हैं