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२१० अमरदीप मान के बाण से बींधा हुआ व्यक्ति अनेक भवों को बिगाड़ता है, ऐसा मैं मानता हूं ॥४॥
अहंकार मानव-मन का नागपाश है, बन्धन है। अहंकार की हवा उसे फुला अवश्य देती है, मगर चैन से नहीं बैठने देती। वह अपने अहंकार के पोषण के लिए लाखों रुपये फूक देता है, गरीब और निम्न जातियों से वैर बाँध लेता है । अहंकार ज्ञान का सबसे बड़ा अवरोधक है। बाहुबली मुनि के मन में आया हुआ अल्प अहंकार भी उनकी मुक्ति-साधना में सबसे बड़ा बाधक बन गया था। माया विजय क्यों और कैसे ?
- माया विजय क्यों अनिवार्य है ? तथा वह कैसे हो सकती है ? इस विषय में अर्हतर्षि के विचार इस प्रकार हैं
अण्णाण - विप्पमूढप्पा, पच्चुप्पण्णाभिधारए । मायं किच्चा महाबाणं, अप्पा बिधइ अप्पकं ॥५॥ . मण्णे बाणेण विद्ध तु भवमेकं विणिज्जति ।।
मायाबाणेण विद्ध तु णिज्जती भवसंतति ॥६॥ अज्ञान के आवरण में रहा हुआ मूढ़ आत्मा वर्तमान को ही पकड़ता है। वह आत्मा माया को महाबाण बनाकर अपने आपको बींध डालता है ॥५॥
दूसरे बाण से बींधे जाने पर एक ही भव नष्ट होता है, किन्तु माया के बाण से बींधा गया व्यक्ति भवपरम्परा को बिगाड़ता है, ऐसा मैं मानता हूं ॥६॥
माया वह दोष है, जो आत्मा को कई कुगतियों और कुयोनियों मैं भटकाता है । माया करने से तिर्यञ्चयोनि का बन्ध होता है। जीवन की वक्रता शरीर को भी वक्र बना देती है। कुटिलता और दुराव-छिपाव से आत्मालोचना, निन्दना, गर्हणा शुद्ध नहीं होती । आलोचना जैसी पवित्र किया भी माया से दूषित हो जाती है । आगम में बताया है--
___'मायी मिच्छादिट्ठी, अमायी सम्मदिट्ठी'
मायाशील आत्मा मिथ्यादृष्टि और माया रहित आत्मा सम्यग्दृष्टि होता है । जैसे डॉक्टर से कपट रखकर कोई भी रोगी स्वस्थ नहीं हो सकता, अध्यापक से छल करके कोई भी विद्यार्थी शिक्षा नहीं पा सकता। वकील से दुराव-छिपाव रखकर कोई भी मुवक्किल मुकदमा जीत नहीं सकता। इसी