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________________ अज्ञ का विरोध : प्राज्ञ का विनोद २०३ द्वेषभाव लाकर प्रतिशोध करने या बदला लेने की भावना न रखे। अर्थात् वह ईंट का जवाब पत्थर से देने की भावना कतई न रखे । प्रहारकर्ता को मिटा देने, उसे मजा चखाने या उसको किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने या उस प्रकार का कोई शाप देने या बदला लेने का निदान करने की गलत विचारणा से दूर रहे । अज्ञानीजन उस पर कितने ही प्रहार क्यों न करें, वह उत्तर नहीं देगा, वह प्रहारकर्ता पर भी आशीर्वाद बरसावेगा। यद्यपि यह साधना कठिन है। फिर भी बदला लेने की प्रतिहिंसा की भावना हृदय के ओछेपन का प्रतीक है। जो सच्चा ब्राह्मण होता है, वह अप्रतिज्ञ होता है, अर्थात्-बदला लेने की भावना से विरत होता है। प्रसिद्ध निबन्ध लेखक बेकन कहता है He that studieth revenge keepeth his own wounds green, which otherwise would heal and do well. 'जो बदला लेने की सोचता है, वह अपने ही घाव को हरा रखता है, जो कि अब तक कभी का अच्छा हो जाता।' साधक न जीविताकांक्षा करे, न मरणाकांक्षा किन्तु मरणान्त कष्ट, रोग या विपत्ति आ पड़ने पर साधक क्या करे ? इसके लिए अर्हतर्षि दो गाथाओं द्वारा मार्गदर्शन दे रहे हैं कि कज्जते उ दीणस्स, णण्णऽत्थ वेहकखणं । कालस्स कंखणं वा वि, णण्णत्थं वा वि हायति ॥३॥ णच्चाण आतुरं लोकं णाणावाहीहि पीलितं । - णिम्मम्मे गिरहंकारे भवे भिक्खु जितिंदिए ॥४॥ अर्थात्-जो दीन व्यक्ति होता है, वह देहाकांक्षा के सिवाय क्या करता है ? अथवा कभी वह मृत्यु की आकांक्षा करता है, किन्तु इसके अतिरिक्त वह दूसरे तत्वों को नष्ट करता है ॥३॥ लोक को आतुर और नानाविध व्याधियों से पीडित जान कर भिक्ष ममत्व और अहंकार से रहित होकर जितेन्द्रिय बने ।।४।। सामान्य मानव जब तक आराम में होता है, अर्थात् -उसका किसी किसी भी प्रकार से विरोध नहीं होता, तब तक जीने की आकांक्षा लिये हुए रहता है, और जब विरोध एवं संकट के क्षणों से गुजरता है, तब मृत्यु की आकांक्षा करने लगता । अर्थात् जीवन की कला से अनभिज्ञ अज्ञानी एवं कायर पुरुषों की ये ही दो निशानियाँ हैं-जीने का मोह या कष्ट से घबराकर मौत की याचना । सचमुच ऐसा व्यक्ति जीवन की कला से अनभिज्ञ है,
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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