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अमरदीप
युगद्रष्टा महापुरुष या विचारक को उसने फांसी पर चढ़ाया तो किसी सत्य के प्रखर वक्ता को जहर का प्याला पिलाकर दुनिया के प्लेटफॉर्म से हट जाने को विवश कर दिया तो किसी को गोली से बींध दिया।
जिस महापुरुष ने दुनिया को करुणा और प्रेम का अमृत दिया, दुनिया ने उसे घणा और तिरस्कार दिया। दुनिया का विष पीकर बदले में अमत दिया पर उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के बदले अज्ञानीजन तिरस्कार ही बरसाते हैं। परन्तु सत्यद्रष्टा विचारक मौत की घड़ियों में भी अपने मारने वाले के प्रति आशीर्वाद बरसाता है । इसी से तो मानव महामानव बनता है।
वास्तव में जनता के आक्रोश और प्राणान्तक विरोध को क्षमा से जीतने का आनन्द महापुरुष ही जानते हैं । ऐसा युगद्रष्टा पुरुष अपने प्राणघातक को भी इसलिए क्षमा कर देता है, कि वह सोचता है-इसने तो मेरे प्राणों के दीप को ही बुझाया है, मेरे सत्य के विचार-प्रदीप को तो नहीं बुझाया।
भगवान महावीर को जब संगम देव भयंकर कष्ट देकर थक चुका था। छह महीने तक निरंतर उनके पीछे लगा रहा फिर भी प्रभु महावीर को अपने धर्य से चलित नहीं कर सका तो जब वह हारकर जाने लगा. तो भगवान के पास आया, बोला-"अब मैं जा रहा हूँ।" तब प्रभू की आँखें कुछ भीग गई । संगम को कुछ आश्चर्य हुआ कि छह महीने तक प्राणघातक कष्ट देने पर भी जिनका एक रोम भी कम्पित नहीं हुआ, वे महावीर अब गद्गद क्यों हो गये ?
संगम की इस शंका का समाधान देते हुए प्रभु महावीर बोले-मुझे सिर्फ एक ही बात की पीड़ा है कि मेरे कारण से जहाँ दुनियां अपना कल्याण कर सकती है वहाँ तुमने मुझे निमित्त बनाकर भारी पापकर्मों का बंध कर लिया। बस मुझे यही पीड़ा है...।
प्रभु को करुणापूरित वाणी सुनकर संगम जंसा क्रू र कठोर हृदय भी पानी-पानी हो गया।
इसी विचार सृष्टि ने क्रूस पर लटके हुए ईसा के मुंह से कहलवाया था-'प्रभो ! इन्हें क्षमा करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं ?' इसी विचारज्योति को पाकर गजसुकुमार मुनि की महान् आत्मा ने सोमिल ब्राह्मण को क्षमा कर दिया था। और स्कन्धक ने अपनी चमड़ी उतारने वाले से कहा था-'भाई ! तुझे कष्ट तो नहीं हो रहा है ?' इसी प्रकाश को पाकर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने गोडसे को क्षमा-प्रदान कर दिया था।