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________________ १६६ अमरदीप विरोध का द्वितीय प्रकार : प्रत्यक्ष में कटु आलोचना का शमन __इससे आगे बढ़कर प्रत्यक्ष विरोध हो तो क्या करना चाहिए ? अर्हतर्षि मार्गदर्शन देते हुए कहते हैं (२) बाले खलु पंडितं पच्चक्खमेव फरुसं वदेज्जा, तं पंडिए बहु मण्णेज्जा 'दिट्ठा मे एस बाले पच्चक्खं फरुसं वदति, णो दंडेण वा लट्ठिणा वा लेढुणा वा मुट्ठिणा वा बाले कवालेण वा अभिहणति, तज्जेति, तालेति, परितावेति, उद्दवेति, मुक्खसभावा हि बाला, ण किंचि बालेहितो ण विज्जति', तं पडिते सम्म सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अधियासेज्जा । ___अर्थात्-"यदि अज्ञानी व्यक्ति किसी प्रज्ञाशील साधक को प्रत्यक्ष में कठोर वचन कहे, तब भी विद्वान् उसे बहुत माने और यह सोचे कि खुशकिस्मती है, यह अज्ञानी व्यक्ति प्रत्यक्ष में कठोर वचन ही कह रहा है, यह डन्डे से, लाठी से, ढेले से, मुक्के से या ठोकर आदि से तो नहीं मारता, तर्जना नहीं करता, न ही ताड़ना-प्रताड़ना करता है, न ही परिताप पहुंचाता है, या उपद्रव करता है । ये अज्ञानी मूर्ख स्वभाव के होते हैं । ये जो न करें वही कम है । अतः विद्वान् साधक उन कष्टों को सम्यक् प्रकार से सहन करे; क्षमाभाव रखे, धैर्य से सहे और मन को समाधिभाव से चलित न होने दे।' यदि मूर्ख जनता विचारक साधक का प्रत्यक्ष में कठोर, वचन कहकर अपमान करती है तो विचारक के लिए वह दया की पात्र है। जब बालक की आँखों का जाला दूर करने के लिए डॉक्टर ऑपरेशन करता है; तो बालक दर्द के मारे चीखता-चिल्लाता है, डॉक्टर को गालियां देता है, किन्तु हितैषी डॉक्टर के मन में बालक के प्रति रोष नहीं उमड़ता। ठीक इसी प्रकार जब परम्परा और रूढ़ियों के घातक जाले समाज की आँखों में बढ़ जाते हैं, सत्य देखने की शक्ति लुप्त हो जाती है, तब कोई विचारक साधक तीखे नश्तर से उसका ऑपरेशन करता है तो अज्ञानीजन चीखता-चिल्लाता है, उसे गालियाँ भी देता है । परोक्ष में ही नहीं, कभी-कभी प्रत्यक्ष में भी उस पर ईर्ष्या और घृणा से आक्षेप करता है। उस अवसर पर निन्दा और अपमान के कड़वे घूट पीता हुआ विचारक साधक सोचे-'ये बेचारे अज्ञानान्धकार में भटक रहे हैं। इनकी आत्मा पर अज्ञान का आवरण है, ये जो न करें वही थोड़ा है। खुशकिस्मती है कि यह प्रत्यक्ष में गालियाँ देकर ही सन्तोष मान रहे हैं, लाठी और डंडे आदि से तो मुझे नहीं पीट रहे हैं।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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