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________________ १६४ अमरदीप अतः साधक के कार्यों का जनसाधारण विरोध और आलोचना करता है, उससे उसे घबराना नहीं चाहिए। बल्कि अपने कार्यों के विरोध को विनोद समझकर उसका उत्साहपूर्वक स्वागत करना चाहिए । अज्ञ ( अज्ञानी) जो विरोध करते हैं प्राजन उसे मात्र विनोद समझकर अपनी समाधि बनाये रखते हैं । तब समझना चाहिए कि हमारे कार्य में निखार आ रहा है। प्रसिद्ध इतिहासकार 'बर्क' ने लिखा है 'जो हमसे कुश्ती लड़ता है, वह हमारे अंगों को मजबूत करता है । हमारे गुणों को तेज करता है । विरोधी एक प्रकार से हमारी मदद ही करता है ।' 1 पांच प्रकार के विरोधों को समभाव से सहे अतः साधक को चाहिए कि विरोध को सह लेने की कला सीखे । जैसे सैनिक का शिक्षित घोड़ा तोप के गोलों से नहीं चौंकता, जबकि गधा पटाखे की आवाज से ही बिदककर बेकाबू हो जाता है; इसी प्रकार साधक का मन श्रुत और शील की धारा से प्रशिक्षित हो तो वह बड़े से बड़े विरोध को प्रसन्नता से सह लेता है। विरोध को सहने के लिए मन को किस प्रकार की साधना की आवश्यकता है, उसी प्रशिक्षण के विषय में प्रस्तुत चींतीसवें अध्ययन में ऋषिगिरि अर्हतषि अपना अनुभवयुक्त मार्गदर्शन देते हुए कहते हैं पंचहि ठाणेहि पंडिते बालेणं परीसहोवसग्गे उदीरिज्जमाणे सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खज्जा अधियासेज्जा । अर्थात् - पांच स्थानों से पण्डित बालजनों (अज्ञानियों) द्वारा उदीर्ण किये जाने वाले परीषहों (दुःखों) और उपसर्गों (त्रास या कष्टों ) को सम्यक् प्रकार (समभाव) से सहन करे, धैर्य धारण करे, तितिक्षापूर्वक समभाव रखे और इस प्रकार उन पर विजय प्राप्त करे । तात्पर्य यह है कि जब कभी किसी विद्वान् विचारक साधक पर अज्ञानियों द्वारा विरोध के रूप में पांच प्रकार में से किसी भी प्रकार विरोध परीषह या उपसर्ग के रूप में उपस्थित हो तो उस समय आगे कहे जाने वाले पांच प्रकार के विचारों से उन कष्टों का स्वागत करे, उन्हें समभावपूर्वक सहन करे, धैर्य रखे, क्षमाभाव धारण करे, मन को बिल्कुल चंचल न होने दे । विरोध का प्रथम प्रकार और उसे सहने का विचार अभी-अभी मैंने आपके समक्ष अज्ञजनों द्वारा पण्डित के कार्यों का पांच प्रकार से विरोध का जिक्र किया था, उनमें से प्रथम प्रकार इस प्रकार है
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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