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________________ १९२ अमरदीप वेदव्यासजी ने कहा है_ 'तीर्थानां हृदयं तीर्थ शुचीना हृदयं शुचिः' तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ हृदय है और पवित्र वस्तुओं में पवित्रतम हैहृदय। भगवान् महावीर ने भी साधकों को यही सन्देश दिया है 'सोही उज्जुयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई।' सरल आत्मा ही शुद्ध होता है, और शुद्ध हृदय में ही धर्म ठहरता है, निवास करता है। अतः सद्धर्मवचन का प्रदान एवं शुद्ध हृदय, ये दो ही साधक के परम कल्याणमित्र हैं, साथी हैं, जो मोक्ष की मंजिल के निकट ले जाते हैं। बन्धुओ! __आप भी अर्हतर्षि अरुण द्वारा प्रतिपादित इन दो साथियों को, भाव-मित्रों को अपने जीवन में अपनाएँ । बालरूप (अज्ञानी) जनों को परख कर उन्हें छोड़े और ज्ञानीजनों, सच्चे कल्याणमित्रों एवं साधु-पुरुषों का सम्पर्क व परिचय करें। इसी से आपका जीवन लक्ष्य बिन्दु की ओर शीघ्र गति करेगा। 00
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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