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पहचान : बाल और पण्डित की १८१ शास्त्रीय परिभाषा में कहें तो वह पण्डित है या बाल ? शक्ति रावण को भी मिली थी, और हनुमान् को भी; परन्तु रावण ने अपनी शक्ति का उपयोग असदाचार में किया तो हनुमान ने अपनी शक्ति मर्यादा पुरुषोतम राम की सेवा में समर्पित कर दी। इसीलिए एक ने विश्व से घृणा प्राप्त की, जबकि दूसरे को विश्व ने पूजा । हनुमान लोकप्रिय और वन्दनीय बने तथा रावण घृणा का पात्र बना। शक्ति का सम्यक् प्रयोग करने पर मानव का पण्डितरूप व्यक्त होता है, जबकि उसी आत्मशक्ति के मिथ्या-प्रयोग से मनुष्य का बालरूप व्यक्त होता है । वह सम्यक् और मिथ्या प्रयोग वाणी (जीभ) और कर्म (काया) दोनों से होता है और दोनों से ही पण्डित और बाल की परख हो जाती है।
जीभ के द्वारा व्यक्ति की आन्तरिक अच्छाई और बुराई का पता लग सकता है। दुर्योधन से जब कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में कहा कि 'दुर्योधन ! पाण्डवों को सिर्फ पांच गाँव ही दे दो और सन्धि करो। युद्ध करना अच्छा नहीं है।' तब दुर्योधन ने उफनते हुए कहा
___'सूच्यन नैव दास्यामि बिना युद्ध न केशव !'
हे कृष्ण ! मैं सूई की नोक पर आए, उतनी जमीन भी बिना युद्ध के नहीं दे सकता।
दुर्योधन को इस तुच्छ स्वार्थभरी वाणी से उसके मलिन और दुष्ट हृदय का चित्र सामने आ गया । संस्कृत भाषा में एक उक्ति प्रसिद्ध है
न जारजातस्य ललाट - शृगम् । कुले प्रसूतस्य न पाणि - पद्मम् ।। यदा-यदा मुञ्चति वाक्य - वाणम् ।
तदा तदा जातिकुल - प्रमाणम् ।। अर्थात–जार से उत्पन्न (मूर्ख) के ललाट पर सींग नहीं होते, और न ही कुलीन (विद्वान्) के हाथों में कमल खिलते हैं, किन्तु जब-जब वे मुख से वचनबाण छोड़ते हैं, तब तब उनके जाति और कुल का सबूत मिल जाता है।
वैद्य जोभ को देखकर शारीरिक स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य का हाल बता सकता है । देखना यह है कि वाणी का वरदान पाकर मनुष्य उसका उप