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________________ लोक का आलोकन १६६ संस्थान-पर्याय, अनन्तगुरु-लघु पर्याय, अनन्त-अगुरुलघु-पर्यायरूप है। इस प्रकार द्रव्यलोक और क्षेत्रलोक सान्त हैं, और काललोक तथा भावलोक अनन्त हैं। ___तीसरा प्रश्न-लोक के स्वामित्व से सम्बन्धित है। इसके उत्तर तीन रूप में दिये गये हैं-(१) पहला उत्तर है- लोक आत्मभाव में स्थित है। उसका कोई स्वामी नहीं है, क्योंकि चतुर्दशरज्ज्वात्मक इस विराट् लोक का कोई एक स्वामी नहीं हो सकता। अपने तत्त्व का नियंता स्वयं है। (२) दूसरा उत्तर है- लोक का स्वामी आत्मा है, क्योंकि वही एक ऐसा तत्त्व है, जो चेतना सम्पन्न है और वही स्वामित्व प्राप्त कर सकता है। अतः स्वामित्व की अपेक्षा से जीवों का यह लोक है । (३) किन्तु निवृत्ति अर्थात्-रचना की अपेक्षा यह लोक जड़ और चेतन दोनों का है, क्योंकि दोनों के द्वारा ही यह लोक-व्यवस्था है। . (४) चौथे प्रश्न का उत्तर है-स्थिति की अपेक्षा लोक अनादि-अनन्त है और भाव की अपेक्षा से यह लोक पारिणामिक भाव में स्थित है । वस्तु का अनौपाधिक शुद्ध भाव पारिमाणिक है। द्रव्य मात्र निज भाव में लीन है। पाँचवा प्रश्न-लोक के लोकभाव के सम्बन्ध में हैं। उत्तर है- 'लोक्यते इति लोकः'-जो आलोकित होता है, देखा जाता है, वही लोक है। गति के सम्बन्ध में किये गये चार प्रश्नों का समाधान इस प्रकार __छठे प्रश्न का उत्तर है-- षड्व्यों में गतिधर्मी दो द्रव्य है-जीव और पुद्गल । अतः गति जीव और पुद्गलों की है। सातवें प्रश्न का उत्तर है - जीव और पुद्गलों की वह गति चार प्रकार से होती है-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । आठवें प्रश्न का उत्तर है-गतिभाव अनादि और अपर्यवसित (अनन्त) है, क्योंकि जीव और पुद्गल दोनों अनादि और गतिशील हैं। नौवें गति सम्बन्धी प्रश्न का उत्तर है-जीव और पुद्गलों का अपने आकाशप्रदेशों से दूसरे आकाशप्रदेशों में जाना ही गति है। कहा भी है ऊर्ध्वगतिधर्माणो जीवाः, अधोगतिधर्माणो पुद्गलाश्च ।' । जीवों का स्वभाव ऊर्ध्वगति करने का है, और पुद्गलों का स्वभाव अधोगति करने का है। इसीलिए यहां कहा गया है-'जीव ऊर्ध्वगामी होते हैं, और पुद्गल अधोगामी होते हैं।' जीवों की जो ऊर्ध्व, अधः और तिर्यकगति होती है, वह कमजन्य सोपाधिक है जबकि पुद्गलों की गति परिणाम-प्रभावित है।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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