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जैसा बोए, वैसा पाए
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अंधेरे में छिपकर किये हुए कर्म का फल भी मिलता है
आज कई साधक इस मिथ्या विश्वास को अपनी ढाल बनाते हैं कि हमें कोई देख नहीं रहा है । बाहर से हमारा उजला आचार है, पर्दे के पीछे की लीला को कोई जानता नहीं है। पर एक दिन इस मिथ्या विश्वास के पर्दे को चीरता हुआ कर्मफल दुनिया के सामने तुम्हारा असली रूप प्रकट कर देगा । एक पाश्चात्य विचारक भी कहता है
Foul deeds will rise, though all the earth overwhelm them to men's eyes.
अर्थात् - बुरे कार्य अवश्य प्रकट होंगे; मनुष्य की आँखों से उन्हें छिपाने के लिए भले ही सारी पृथ्वी उन पर ढक दी जाय, फिर भी प्रकट हुए बिना नहीं रहेंगे।
भगवान् महावीर ने तो स्पष्ट कहा है
सुचिण्णा कम्मा, सुचिण्णा फला भवंति । दुचिण्णा कम्मा, दुचिण्णा फला भवंति ॥
शुभ कर्मों के प्रतिफल सुन्दर होते हैं, और बुरे कर्मों के प्रतिफल सदैव बुरे होते हैं ।
स्थान और समय बदलने से कर्म नहीं बदलते
कुछ लोगों का कहना है कि समय और स्थान बदल जाने से कार्य में परिवर्तन हो जाता है । सुन्दर वस्तु सदैव सुन्दर रहेगी। सोना महल में सोना रहे और श्मशान में पीतल बन जाय, ऐसा नहीं होता, सोना सर्वत्र सोना ही रहेगा और पीतल पीतल । अर्हतर्षि वायु इसी तथ्य को प्रकट कर हैं—
मण्णंति भद्दका मद्दका इ, मधुरं मधुरंति माणति ।
कडुयं कडुयं भणियंति, फरुसं फरुसंति माणति || ६ ||
अर्थात् - भद्र कार्यों को दुनिया भद्र मानती है, और मधुर को मधुर स्वीकार करती है । कडुए को कडुआ कहा जाता है और कठोर को कठोर कहा जाता है ||६||
कुछ लोगों का विश्वास है कि अमुक स्थान पर चले जाने पर पापपुण्य में बदल जायेगा और अमुक स्थान पर पुण्य भी पाप हो जायगा, किन्तु यह बात पूर्ण सत्य नहीं है । माना कि व्यक्ति के मन को स्थान भी प्रभावित करता है, जब तक स्थितप्रज्ञ दशा नहीं आई तब तक समय और स्थान