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________________ इन्द्रिय-निग्रह का सरल मार्ग १५५ बटन (स्विच) बन्द करना पड़ता है, अन्यथा घूमते हुए पंखे को पकड़ने जाएंगे तो अंगुलियाँ भले ही कट जाएँ, पंखे की गति कम नहीं हो सकेगी। इन्द्रियों के पंखे को रोकना है तो पहले मन के स्विच को दबाना होगा। मन को साधने से इन्द्रियाँ स्वतः सध जाएँगी । इन्द्रियों को साधने का सबसे आसान तरीका मन को साधना है। परन्तु एक बात खास महत्वपूर्ण यह है कि मन को जीतना कोई आसान बात नहीं है। मानव का मन एक प्रकार से रणक्षेत्र है। उस पर सदैव शुभ और अशुभ का द्वन्द्वयुद्ध चलता है। मानव के अन्तर् में राम और रावण दोनों हैं। दोनों के युद्ध में विजय उसी की होगी जिसके पास विशाल सेना है। सद्वत्तियाँ राम की ओर से लड़ती हैं, और असद्वत्तियाँ रावण की ओर से लड़ती हैं। इस आन्तरिक युद्ध में विजय पाने के लिए विवेकरूपी हाथी पर आरूढ़ होकर होगा। शुभ संकल्प और प्रशस्त अध्यवसायरूपी शस्त्रों को ग्रहण करना होगा और युद्ध में उतरे हुए सैनिकों में अदम्य उत्साह होगा तो विजय हमारे साथ है। केशी-गौतम-संवाद (उत्तराध्ययन २३।३६) में महामुनि गौतम शत्रुविजय के लिए सर्वप्रथम एक महान् शत्रु - मन पर विजय पाने का महत्व बताते हुए कहते हैं एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । दसहा उ जिणित्ताणं, सव्वसत्त जिणामहं । एक (मन) को जीत लेने पर पांच इन्द्रियों को जीत सकते हैं। पांच के जीत लेने पर दस शत्र पर विजय पा सकते हैं। और दस पर विजय पा लेने के बाद समस्त शत्रुओं पर विजय पा सकते हैं। कषाय एवं मन पर विजय पाने वाले की तपस्या सफल इसके साथ ही दूसरा प्रश्न यह उठता है कि क्या तपःसाधना से इन्द्रियविजय नहीं हो सकती ? अर्हतर्षि वर्धमान इसके लिए सुन्दर मार्गदर्शन जित्ता मण कसाए या, जो सम्म कुरुते तवं ।। संदिप्पते स सुखप्पा, अग्गी वा हविसाहुते ॥१७॥ अर्थात्-मन और कषायों पर विजय पाकर जो साधक सम्यक् तप करता है, वह शुद्धात्मा हविष (होम के योग्य पदार्थों) से आहूत अग्नि की भांति देदीप्यमान होता है। इन्द्रिय-विजय के लिए साधक तपःसाधना अवश्य करे किन्तु उसकी
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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