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________________ इन्द्रिय - निग्रह का सरल मार्ग १५३ करना चाहिए। दोनों चाहिए तथा अमनोज्ञ स्पर्श पर घृणा या द्वेष नहीं स्थितियों में समभाव रखना चाहिए । मतलब यह है कि ये पांचों इन्द्रियाँ इतनी बलवान् हैं कि अगर सावधानी न रखे तो बड़े-बड़े विद्वानों को भी पछाड़ देती हैं । इन्द्रियों को वश में रखने, न रखने से लाभ-हानि इन्द्रियों को वश में न रखने से कितनी बड़ी हानि होती है ? इसके लिए अर्हतषि कहते हैं - दुहता इंदिया पंच, संसाराय सरीरिणं । ते चैव नियमिया सम्मं, णिव्वाणाय भवंति हि ॥ १३ ॥ अर्थात् - दुर्दान्त बनी हुई पांचों इन्द्रियाँ जीव के लिए संसार की हेतु होती हैं। जब वे ही इन्द्रियाँ सम्यक् प्रकार से संयमित होती हैं तो निर्वाण का कारण बनती हैं। मनुष्य के पास इन्द्रियाँ बहुत बड़ी शक्ति हैं । वे अपने आप में न तो अच्छी हैं न ही बुरी । उनका उपयोग अच्छी दिशा में किया जाए तो उनसे आत्मशक्तियाँ विकसित होती हैं, और जब विपरीत दशा में किया जाए तो ही इन्द्रियाँ आत्मा के लिए बाधक एवं संसारपरिभ्रमण की हेतु बन जाती हैं । व्यक्ति ने रत्न के व्यक्ति ने रत्न के रत्न का इसमें कोई दो व्यक्तियों को एक-एक रत्न दिया गया । एक प्रकाश में रातभर खटमल पकड़-पकड़ कर मारे । दूसरे प्रकाश में एक आध्यात्मिक ग्रन्थ का स्वाध्याय किया । -दोष नहीं है, गुण-दोष है तो उपयोग करने वाले का है । इसी प्रकार इन्द्रियाँ एक दुर्जन को भी मिली हैं, और एक महात्मा को भी मिली हैं, दुर्जन उनका उपयोग गलत ढंग से करता है, वह अपना संसार बढ़ाता है और महात्मा अच्छे ढंग से उपयोग करके संसार घटाता है, मोक्ष की ओर गति करता है । निष्कर्ष यह है कि इन्द्रियों को अगर विषमपथ की ओर निरंकुश दौड़ने दिया जाए तो वे भववृद्धि का कारण बनती हैं और यदि उन पर ज्ञान का अंकुश रहे और उन्हें सुपथ की ओर गति करने दिया जाए तो वे जीव को निर्वाणगामी बना सकती है । इन्द्र असंयमी एवं इन्द्रियसंयमी की दशा इन्द्रियसंयम की आवश्यकता पर बल देते हुए अर्हतषि एक सुन्दर रूपक द्वारा इसे समझाते हैं
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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