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कामविजय : क्यों और कैसे ?
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केसर का व्यापारी प्रतिक्षण सावधान रहता है कि उसमें धूल न पड़ जाए, क्योंकि उसमें धूल पड़ने से उसका मूल्य कम हो जाता है, इसी प्रकार मेधावी साधक आत्मा पर लगने वाले कामादि मैल को दूर करने के लिए प्रतिक्षण सावधान रहे ज्यों ही मन में, वचन में या काया में काम का मैल आए, त्योंही वह कामविजेता तीर्थंकरों अथवा स्थूलभद्र आदि महापुरुषों का स्मरण करके तुरंत उस काम - मल को हटा दे। अगर साधक जरा भी गाफिल हुआ तो कामविकार उसके मन में प्रविष्ट हो सकता है । अतः साधक प्रतिक्षण जागृत रहे, और अपने मन, वचन, काया पर पहरेदारी रखे, यदि काम रूपो चोर जरा भी घुसने लगे कि तुरन्त उसे भगा दे । जैसे स्वर्णकार सोने पर आए हुए मैल को तुरन्त दूर करता है, इसी लगन के साथ साधक आत्मा पर लगे कामादि के मौल को दूर कर दे ।
एक बात और है - मनुष्य काम-सुख के लिए जितना पुरुषार्थं करता है, वह बिल्कुल निष्फलं जाता है, क्योंकि काम सेवन से उसे रोग, शोक, वियोग, अतृप्ति, पतन शक्तिनाश आदि अनेक दुख ही मिले, सुख नहीं । इससे लाभ के बजाय सैकड़ों गुनी हानि ही हुई । जैसे दीपक जल-जल करके काजल तैयार करता है, परन्तु आँखों में आँजते ही वह काजल समाप्त हो जाता है । वल्मीक ( दीमक ) बहुत मेहनत करके अपना मिट्टी का घर बनाता है, किन्तु मानव या पशु के एक ही पाद प्रहार से वह समाप्त हो जाता है । मधुमक्खियाँ इधर-उधर से फूलों का रस ले-लेकर बहुत परिश्रम से मधु का छत्ता बनाती हैं; किन्तु क्रूर मधुग्राही धुआ छोड़ता है, उससे सभी मधुमक्खियाँ अपनी जान बचाकर उड़ जाती हैं, महीनों की श्रम साधना से एकत्रित मधु संचय को वह एक ही घंटे में लेकर चला जाता । मधुमक्खियों काश्रम व्यर्थ जाता है । इसी प्रकार काम सुख के लिए किया गया अज्ञानी मानव का पुरुषार्थ भी व्यर्थ जाता है । इन सबका पुरुषार्थ निष्फल गया, क्योंकि उसका परिणाम गलत आया । किन्तु आत्म-साधना के लिए संयम में किया गया पुरुषार्थ कभी निष्फल नहीं जाता, क्योंकि आध्यात्मिक गुणों के हरण करने की ताकत किसी में नहीं है । इसीलिए अर्हतर्षि कहते हैं कि इन सभी भौतिक पुरुषार्थों के विपरीत परिणामों को देखकर साधक को चाहिए कि वह संयम में पुरुषार्थ करे ।
कई लोग इस भ्रान्ति के शिकार हैं कि जिनके पास कामभोगों के प्रचुर साधन हैं, वे ऊँचे हैं, उनका जीवनस्तर ऊँचा है और जिनके पास कामभोगों के साधन स्वल्प हैं, या बिल्कुल नहीं हैं, वे नीचे हैं, तुच्छ हैं, पर ये विकल्प अज्ञानियों की क्षुद्र कल्पनाओं पर आधारित हैं । तत्त्वज्ञानी कामभोगों में