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________________ ११० अमरदीप तस्करी, तौल - नाप में गडबड़, बनावट वस्तु में हेराफेरी आदि का कतई त्याग हो । काम, क्रोध और लोभ, ये समाज को रसातल में पहुंचाने वाले नरक के द्वार हैं । काम-विजय का फलितार्थ यहाँ व्यभिचार, परस्त्रीगमन एवं यौन स्वच्छन्दता के त्याग से है । कोधविजय का फलितार्थ है- आवेश में आकर एक दूसरे वर्ण के घरों को आग लगा देने, मारपीट करने, तोड़फोड़, दंगा एवं उपद्रव के त्याग से है । लोभविजय का फलितार्थ है-चारों वर्णों में दहेज, ब्याज, गबन, भ्रष्टाचार, जूआ-सट्टा, रिश्वतखोरी आदि के कारण जो लोभवृत्ति बढ़ी है, उससे विरत होना । प्राणिमात्र के प्रति शुद्ध प्रेम, आत्मवत् सर्वभूतेषु की भावना को चरितार्थ करना है । ऐसी भावना वाला मांसाहार, मद्यपान एवं शिकार कर ही नहीं सकता । प्राणियों के हितों की चेष्टा भी तभी होगी, जब उनके प्रति दिल में उदारता, दुःख और पीड़ा के समय सहानुभूति, दया और करुणा होगी । इसी प्रकार चतुर्विध वर्णधर्म के साथ नीति का अनुबन्ध जोड़ा गया, ताकि चारों वर्णों में परस्पर एक दूसरे के कर्म - कर्तव्य में टक्कर न हो । नैतिकता का अनुबन्ध जिस धर्म के साथ न हो, वह चिरकाल तक टिक नहीं सकता । महाकवि शेक्सपीयर ने कहा A religion without morality is tree without root, and a morality without religion is root without tree. अर्थात् - नैतिकता (नीति) के बिना धर्म, मूलरहित वृक्ष है, और धर्मविहीन नैतिकता (नीति) भी वृक्षरहित, जड़ है । अतः चातुर्वणिक धर्म का नीति के साथ गाढ़ सम्बन्ध है । एक के बिना दूसरा अधूरा है । प्रस्तुत छब्बीसवें अध्ययन में मातंग अर्हतर्षि ने इसी वर्णधर्म-सम्बन्धी तथ्यों को प्रकाशित करते हुए कहा कतरे धम्मे पण्णत्ते, सव्वा महाउसो ! सुणेह मे । किण्णा बंभण- वण्णाभा, जुद्ध सिक्खंति माहणा ॥ १ ॥ ' ( उस महामुनि ने ) कितने प्रकार के धर्म बतलाए हैं ? सभी आयुष्मानो ! तुम लोग मुझसे सुनो। (आश्चर्य है) ये ब्राह्मणाभास माहन श्रावक युद्ध क्यों करते हैं ?" वास्तव में बहुत-से तथाकथित ब्राह्मण जैसे दिखाई देने वाले लोग हैं । जो आकृति से ब्राह्मण दिखाई देते हैं, परन्तु प्रकृति से वे ब्राह्मण के बदले
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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