SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० अमरदीप करने के लिए, तथा आत्म-धर्म चिन्तन करने लिए- इन छह कारणों से मुनि आहार ग्रहण करे तथा शरीर के प्रति अनासक्त निग्रन्थ मुनि आहार भी तभी लेते हैं, जब वह गवेषणा और ग्रहणैषणा के कुल बयालीस (१६ उद्गम के, १६ उत्पादना के और १० एषणा के) दोषों से रहित हो । तथा वह आहार दूसरों के लिए बनाया हुआ हो, अर्थात् साधु के निमित्त- उद्देश्य से न बना हो, तभी वह ग्रहण करता है । इन्हीं नियमो के अनुसार वह आवश्यकतानुसार पिण्ड (आहार), शय्या और उपधि (उपकरण) की गवेषणा करके लेता है। तथा अंगार, धूम आदि पाँच परिभोगषणा (भोजन करते समय लगने वाले) दोषों को वर्जित करता है। कामविजेता साधु का आहार-विहार नियमित होता है । मन, वचन और काया से अशुद्ध आहार ग्रहण न करना, न कराना और न हो अनुमोदन करना, इस प्रकार नवकोटि-परिशुद्ध आहार. का ही वे ग्रहण और उपयोग करते हैं । __ और सबसे महत्त्वपूर्ण गुण उनमें यह होता है कि वे समाज में रहते हैं, तब उनके दर्शन और प्रवचन श्रवण तथा भक्ति उपासना के लिए मधुर संभाषिणी, रूपवती ललनाएँ आती हैं, परन्तु उनको देखकर उनके मन के किसी कोने में भी काम-विकार पैदा नहीं होता। वे सबसे निर्लेप, निःसंग एवं निःस्पृह रहते हैं । सराग होते हुए भी कामवासना क्यों नहीं उत्पन्न होती ?. ... प्रश्न होता है कि उनके समक्ष सुन्दर नारियों की प्रत्यक्ष उपस्थिति होते हुए भी उनके मन में लेशमात्र भी कामवासना उत्पन्न नहीं होती, इसका क्या कारण है ? जबकि ऐसे साधक छद्मस्थ और सरागी होते हैं। इसी प्रश्न को उठाकर अर्हतर्षि इसका युक्ति-युक्त समाधान करते हैं प्रश्न-से कधमेतं विगत रागता? (समाधान) सरांगस्स वियणं अविक्ख हतमोहस्स, तत्थ-तत्य इतराइतरेसु कुलेसु परकडं जाव पडिरूवाओ पासित्ता णो मणसा वि पाउभावो भवति, त कहमिति ? मूलघाते हतो रुक्खो, पुप्फघाते हतं फलं । छिण्णाए मुद्धसूइए, कतो तालस्स रोहणं ? १॥ प्रश्न है-(उन महापुरुषों में) वीतरागता कहां से आ गई ? समाधान इस प्रकार है-यद्यपि वे अभी सराग हैं, तथापि उन्होंने
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy