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________________ अमरदीप रूप, यौवन, सौन्दर्य, सम्पत्ति, सौभाग्य, नीरोगता और लोकप्रियता, बल या धन, आदि सब मानव-मन में छिपे अहंकार के बीज हैं। सनत्कुमार चक्रवर्ती का रूपगर्व उतर गया, जब दो परीक्षक देवों ने उनके थूक में रोग कीटाणु कुलबुलाते हुए बताए । यौवन, बल, रूप और सौन्दर्य के गर्व को जरा और मृत्यु एक ही झटके में समाप्त कर देती है। नीरोगता और लोकप्रियता भी कब स्थिर रहती है ? असातावेदनीय कर्म का उदय होते ही नीरोगता विदा हो जाती है, तथाविध नामकर्म का उदय होते ही लोकप्रियता और सौभाग्य दोनों का ही टिकट कट जाता है। धन भी तब तक रहता है जब तक पुण्यकर्म प्रबल है । अनित्यता निर्दय होकर सब पर समान रूप से प्रहार करती है। निद्रा, मद्य और प्रमाद ये जीवन को तीन कैंचियाँ हैं, जो सद्गुणों को काटती रहती हैं, अनित्यता उन्हें भी सबक सिखाती रहती है; जो लापरवाह होकर निद्रा की गोद में खुर्राटे भर रहे हैं, जो मद्य के प्याले पोकर मतवाले हो रहे हैं और जो वासना की लहरों में बहकर मस्ती में झूम रहे हैं, उन पर भी मौन अट्टहास करती है। रत्नों के सिंहासन पर बैठने वाले देवेन्द्र, और स्वर्गीय वैभव के मद में छके हुए दानवेन्द्र तथा स्वर्णसिंहासनों पर बैठ कर मूँछों पर ताव देने वाले नरेन्द्र, सभी का झूठा अहंकार और झूठी आशाएँ, अनित्यता ने समाप्त कर दी। उनके मिथ्या अहंकार को चूर-चूर कर दिया । जो यह कहते थे कि हमारा राज्य, हमारा स्वर्गीय वैभव, या हमारा अधिकार सैकड़ों युगों तक अटल रहेगा। उन्हें काल की कराल शक्ति ने एक दिन यहाँ से चलने के लिए विवश कर दिया । ८० देवेन्द्र, दानवेन्द्र, और मानवेन्द्र, ये सत्ता और शक्ति के प्रतीक हैं । एक दिन ये रत्नजटित सिंहासन पर बैठकर सिंह की भाँति गर्जा करते थे, इनका आदेश टाला नहीं जा सकता था, सम्पत्ति और वैभव इनके चरणों म लौटते थे, और कहते थे, - हम अमर बन कर आए हैं, परन्तु वे भी एक दिन सदा के लिए मृत्यु की गोद में सो गए । देवसृष्टि हो या दानवसृष्टि, मानव जगत् हो या पशुजगत् अनित्यता का सर्वत्र राज्य है । अमुक काल तक दिव्यभवनों में रहने के बाद एक दिन उन देवकुमारों को भी वहाँ से चल देना पड़ता है, जो मानते थे कि हम अमर हैं, हमारा यौवन शाश्वत है । अनित्यता की धुरी पर परिवर्तन का नृत्य चल रहा है । ससार की कोई भी शक्ति सृष्टि के इस नियम में परिबर्तन नहीं ला सकती । यह कहे कि मैं मृत्यु को रिश्वत देकर या साम, दाम, भेद आदि
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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