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________________ १८ अमर दीप लिए हैं । या उसने गणित का अध्ययन भली-भाँति नहीं किया है, बिना समझे- बुझे रट-रटाकर परीक्षाएँ पास कर ली हैं। अगर वह गणित पढ़ा होता तो जो हिसाब या सवाल उसे विद्यालय में आता था, वह अपनी दुकान या फर्म में भी आना चाहिए था । यही बात हम उस व्यक्ति के विषय में कह सकते हैं, जिसने वर्षों तक धर्मशास्त्रों का गुरु- मुख से श्रवण किया, धर्म-श्रवण करके उस धर्म को आचरण में लाने के उपाय भी जाने, गुरु- मुख से धर्माचरण में बाधक तत्त्वों-अतिचारों से बचने का उपाय भी सीखा । परन्तु वह सब अभ्यास उसने धर्मस्थानरूपी विद्यालय में किया । धर्मस्थान में बचपन से वह आता था, धर्म श्रवण करता था । स्कूल का छात्र था, तब तक तो उसे धर्माचरण में बाधक तत्त्वों से बचने में कोई कठिनाई नहीं आई, किन्तु जब वह सयाना हुआ, अपने गृहस्थाश्रम को, व्यवसाय को तथा पिताजी द्वारा किये जाने वाले सामाजिक या राष्ट्रीय कार्यों को सँभाला, तब वह धर्मस्थान में सुने हुए, जाने हुए या सीखे हुए धर्म को आचरण में लाना भूल जाए, तो आप उसे क्या कहेंगे ? क्या वह कोरा धर्मश्रवण या धर्मज्ञान उस व्यक्ति के जीवन को विकसित कर सकेगा या अध्यात्म के उच्च शिखर तक पहुँचा सकेगा ? कदापि नहीं । राजस्थान के एक विचारक ने ऐसे श्रोताओं के लिए बहुत ही कड़वी बात कह दी है - सुणतां सुणतां फूट या कान । पण नहीं आयो हिवड़े ज्ञान ॥ धर्म-श्रवण करने के साथ दुर्गुण भी छोड़ो सेम्युएल जॉनसन नामक एक अँग्रेज लेखक ने ठीक ही कहा है ' शब्द पृथ्वी की पुत्रियाँ हैं और कार्य स्वर्ग के पुत्र । आचरण के बिना कोरे धर्मश्रवण से हमारा उत्थान नहीं हो सकता । लगातार प्रवचन सुनते जाएँ, तत्त्वों और व्रतों का ज्ञान भी करलें, किन्तु श्रवण से प्राप्त वह ज्ञान हृदय में नहीं उतरे, आचरण में न आए तो उस ज्ञान का आत्म-विकास की दृष्टि से क्या और कितना महत्त्व है ? मुझे एक रोचक दृष्टान्त याद आ रहा है सदैव व्याख्यान सुनने के रसिक एक सेठजी एक बार एक मुनि का व्याख्यान सुन रहे थे । धाराप्रवाही व्याख्यान सुनते-सुनते सेठजी झूमने लगे और बीच-बीच में - 'वाह वाह !' 'बहुत सुन्दर !' 'बहुत खूब' की
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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