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अमर दीप
बाद में बालक नारद बड़ा हुआ । माता-पिता ने उसे विद्याएँ पढ़ाईं । गुरुकृपा से नारद ने अनेक प्रकार की विद्याएँ हस्तगत कर लीं । विद्याबल से उसे सोने की कुण्ड (कांचन कुण्डिका) और मणिपादुका (खड़ाऊँ) भी प्राप्त हो गईं जिसके बल से वह पक्षी की भांति ऊंचे आकाश में मनचाही उड़ानें भरने लगा ।
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एक बार देवर्षि नारद द्वारका गये। वहां वासुदेव श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा - शौच क्या है ? नारद इसका उत्तर न दे सके । वे समाधान के लिए पूर्वविदेह पहुंचे। वहाँ देखा, सीमंधर तीर्थंकर से युगबाहु वासुदेव भी यही प्रश्न पूछ रहे थे तो प्रभु ने कहा - 'सत्य ही शोच है' ।
नारद इस समाधान को पाकर पुनः द्वारिका आए और वासुदेव श्रीकृष्ण से कहा - 'सत्य ही शौच है ।' परन्तु वासुदेव ने प्रतिप्रश्न किया'सत्य क्या है ?' नारद इस प्रश्न का भी उत्तर न दे सके । संशयलीन नारद इस पर गहरे चिन्तन में डूब गए । इस पर ऊहापोह करते-करते उन्हें जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त हो गया । वे स्वयं प्रतिबोध पाकर 'प्रत्येकबुद्ध' हो गए ।
अतः सत्य क्या है ? इसका उत्तर उन्होंने इसी प्रथम अध्याय में दिया है कि " श्रोतव्य श्रवण ही सत्य है, और वही पवित्र (शौच ) है । धर्म (सत्य) श्रवण करने से बढ़कर अन्य कोई शौच नहीं है ।" श्रवण : मोक्ष की पहली सीढ़ी
भगवान् महावीर ने एक रूपक की भाषा में भगवती सूत्र ( २/३/५) में बताया है कि अध्ययन का सर्वोच्च शिखर है - निर्वाण - मोक्ष | यह अध्यात्म साधना की चोटी है। इस चोटी पर पहुँचने के लिए पहली सीढ़ी है - श्रवण - धर्मश्रवण । जैसा कि उन्होंने श्रवण से निर्वाण तक का क्रम बताया है
सवर्ण नाणे विन्नाणे पच्चक्खाणे य संवरे ।
aroge तवे चैव वोदाणे अकिरिया सिद्धी ॥
अर्थात् श्रवण से ज्ञान, ज्ञान से विज्ञान, प्रत्याख्यान, संवर, संयम, तप, व्यवदान यों क्रमशः बढ़ते-बढ़ते अन्त में सभी कर्म - क्रियाओं से मुक्त होने पर ही सिद्धि-मुक्ति की प्राप्ति होती है । ये निर्वाण मोक्ष की क्रमिक सीढ़ियाँ जिसमें श्रवण सर्वप्रथम सीढ़ी है ।
धर्मोपदेश- श्रवण : उत्तम गुणों के अर्जन के लिए
जिनवचनों के पुनः-पुनः श्रवण करने से मुख्यतया तीन गुण उप
लब्ध होते हैं । जैसा कि सावयपण्णत्ति (३) में कहा है
नव-नव-संवेगो खलु, नाणावरण-खओवसमभावो । तसाहिगमो य तहा, जिणवयण-सवणस्स गुणा ॥