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__ आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज के स्नेहाशीर्वाद एवं गुरुदेव श्री भंडारी जी महाराज की देख-रेख में आपने जैनधर्म, दर्शन, प्राकृत, संस्कृत, गीता, रामायण, वेद तथा भारतीय दर्शनों व धर्मों का गहरा अध्ययन किया । आप एक योग्य विद्वान, कवि और लेखक के रूप में प्रसिद्ध हए । आपकी वाणी, स्वर की मधुरता और ओजस्विता तो अद्भुत हैं ही, प्रवचन शैली भी बड़ी ही रोचक, ज्ञानप्रद और सब धर्मों की समन्वयात्मक हैं । हजारों जैन-जैनेतर भक्त आपकी प्रवचन सभा में प्रतिदिन उपस्थित रहते हैं।
आप समाज की शिक्षा एवं चिकित्सा आदि प्रवृत्तियों पर ज्यादा ध्यान देते हैं। जगह-जगह विद्यालय, गर्ल्स हाईस्कूल, वाचनालय, चिकित्सालय और सार्वजनिक सेवा केन्द्र तथा धर्मस्थानकों का निर्माण आपकी विशेष रुचि व प्रेरणा का विषय रहा है। पंजाब व हरियाणा में गाँव-गाँव में आपके भक्त और प्रेमी सज्जन आपके आगमन की प्रतीक्षा करते रहते हैं।
आपश्री ने जैनधर्मदिवाकर आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी महाराज की जन्म शताब्दी वर्ष में उनकी स्मृति में जहाँ अनेक धर्मस्थानक, हाईस्कूल आदि की प्रेरणा दी है, वहाँ साहित्य के क्षेत्र में भी महान् कार्य किया है।
सूत्रकृताँग जैसे दार्शनिक आगम को दो भागों में सम्पादन-विवेचन किया, भगवती सूत्र जैसे विशाल सूत्र का (५ भाग) सम्पादन विवेचन किया है जो आगम प्रकाशन समिति व्यावर से प्रकाशित हो रहे हैं। आचार्य श्री की अमरकृति “जैन तत्त्व कलिका'' विकास को भी आधुनिक शैली में सुन्दर रूप में संपादित किया है । और 'जैनागमों में अष्टांग योग' का भी बहुत ही सुन्दर व आधुनिक ढंग का एक परिष्कृत-परिवर्धित संस्करण 'जैन योगः सिद्धान्त और साधना' के रूप में तैयार किया है। ऋषि भाषितानि सूत्र पर आपश्री के विवेचना पूर्ण प्रवचन अमरदीप में संकलित है।
आप यश एवं पद की भावना से दूर रहकर समाज में धर्म तथा ज्ञान का प्रचार करने में ही रुचि रखते हैं। समाज ने आपको प्रवचन भूषण, श्रुतवारिधि, उत्तरभारत केसरी श्रुतवारिधि आदि पदों से सम्मानित किया है। गुरुदेव भंडारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज के सान्निध्य में आप युग-युग तक धर्म की यशःपताका फहराते रहें-यही शुभ कामना है।