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________________ आयात्मिक विकास का राजमार्ग १५५ गाथा जब हम पढ़ते हैं तो भगवान् महावीर ने उनके नाम के आगे कोई भी for डिग्री आदि का सूचक विशेषण नहीं लगाया । हाँ, उसके सामाजिक और व्यावहारिक जीवन में आध्यात्मिक विकास की क्षमता के परिचायक विशेषणों का प्रयोग भगवान् ने अवश्य किया है - "अड्ढे, दित्ते, वित्ते, अपरिभूए "1" वह धन और गुणों से आढ्य ( सम्पन्न ) था, दीप्त (तेजस्वी ) था, समाज में विख्यात (वित्त ) था, और किसी से पराभूत होने (दबने) वाला नहीं था, इत्यादि । भगवान् महावीर की स्तुति करते हुए कहा गया है• खेयन्नए से कुसले महेसी वे क्षेत्रज्ञ (आत्मज्ञ) और कुशल महर्षि थे । इसी प्रकार गणधर गौतम स्वामी के आध्यात्मिक विकास के सूचक पाठ भी भगवती सूत्र आदि शास्त्रों में मिलते हैं "उग्गतवे, दित्ततवे, तत्ततवे, घोरबंभयारी .............)) वे उग्रतपोधनी थे, उनकी तपस्या तंजोयुक्त थी, उनकी तपश्चर्या तपीतपाई (अभ्यास युक्त) थी । वे घोर - ब्रह्मचर्यव्रती थे । .......इत्यादि । आध्यात्मिक विकास की पहचान जब साधक के जीवन का आध्यात्मिक विकास हो जाता है तो उसके जीवन की साधना तेजस्वी होती है, उसके ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, विनय, ब्रह्मचर्य, सत्य, अहिंसा, दया, क्षमादि धर्म, आदि सब आत्मिक गुणों में आत्मिक विवेक सहज, अकृत्रिम, तेजस्वी, सुदृढ़ एवं अविचल हो जाता है । अतः आध्यात्मिक विकास सहज प्राप्त भी होता है, विवेक जनित भी । सहज प्राप्त तो किन्ही विरले ही साधकों का होता है, जिन्होंने पूर्वजन्मों में अध्यात्म-साधना की हो, और वह अधूरी रह गई हो । जैसे उत्तराध्ययन सूत्र में वर्णित अनाथी मुनि, नमिराजर्षि आदि का तथा अन्तकृद्दशांग में वर्णित गजसुकुमार मुनि, अतिमुक्तक मुनि आदि का जीवन सहज प्राप्त आध्यात्मिक विकासमय था । किन्तु विवेक जनित आध्यात्मिक विकास होता है वर्तमान जीवन में पुरुषार्थ करने से । उत्तराध्ययन सूत्र में वर्णित हरिकेशी मुनि, चित्त मुनि आदि का तथा अन्तकृत् सूत्र में वर्णित अर्जुन मुनि आदि का जीवन विवेकजनित आध्या -
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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