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________________ * दूसरा फल : गुरु-पर्युपास्ति : गुरु-सेवा * . * ८५ * से विमुख रहकर मोक्षमार्ग का आगला कैसे पाया जा सकेगा? इस प्रकार गुरु-कृपा के अभाव में मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है। ___जहाँ तक जीव सब कर्मों से मुक्त नहीं हो जाता है, वहाँ तक जीव को भवान्तर में गमन करना ही पड़ता है। एक भव में की हुई ज्ञान आराधना भवान्तर में कभी-कभी ही साथ चलती है। वह भी पूर्णतः नहीं। अतः विस्मृत ज्ञान की पुनः जागृति के लिए गुरु के संयोग की आवश्यकता रहती है। इसलिए भवान्तर में भी गुरु की चरण-सेवा की प्राप्ति की भावना की गई है। इसी भावना को दृढ़ करने के लिए जीवन के अन्तिम क्षणों में 'साहू सरणं पवज्जामि' रूप संकल्प किया जाता है। जीवन के अन्तिम क्षणों में किया हुआ ससंकल्प अगले भव में गुरु के संयोग की प्राप्ति का सहायक बनता है। इस प्रकार नित्य प्रति शरण की भावना करते रहने से गुरु के सामीप्य और भक्ति की भावना पुष्ट होती है। गुरु-चरण की सेवा और सद्भक्ति से हृदय में ज्ञान दीप सदैव जलता रहता हैं और जहाँ प्रकाश होता है, वहाँ भय का आवास नहीं रह सकता है। ज्ञान की ज्योति और भयों से मुक्ति मोक्षमार्ग की मंजिल तय करने के लिए जीव को तत्पर बनाती है। .. गुरु की विनय करना, उनकी आज्ञा-पालन आदि से वे प्रसन्न होते हैं। उनकी सेवा से शिष्य का उनके प्रति हृदय में स्थान होता है। जब साधक गुरु का सच्चा अन्तेवासी बनता है, तब उनका प्रसन्न मन शिष्य को अनायास मंगलमय आशीर्वाद प्रदान करने लगता है। गुरु ही देव और धर्म का वास्तविक बोध प्रदान करते हैं। जिससे सुदेव और सुधर्म में भक्ति जाग्रत होती है। सम्यक् भाव से की हुई सेवा से प्रसन्न हुए गुरु शिष्य को एक अद्भुत ज्ञान की किरण दे देते हैं कि जीवन का कल्याण हो जाता है। जीवन में एक अनूठा प्रकाश जाग्रत हो जाता है। गुरु की उपमाएँ पूज्यपाद कविकुल कमल दिवाकर श्री त्रिलोक ऋषि जी महाराज गुरु महिमा का पद्य में गुणगान करते हुए, कुछ उपमाओं से उपमित करते हुए कह रहे हैं "जैसे कपड़े को थान, दरजी वेतत आण, खण्ड-खण्ड करें जान, देत सो सुधारी है। काठ के ज्यों सूत्रधार, हेम को कसे सुनार, माटी के ज्यों कुम्भकार, पात्र करे तैयारी है। धरती को किसान जाण, लोहे को लुहार मान, , सिलावट सिला आण, घाट घड़े भारी है।
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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