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* पद्म-पुष्प की अमर सौरभ *
जब आत्मा कर्मबन्धन से भारी हो जाती है, तब आत्मा का पतन होता है। जब आत्मा के कर्म पतले पड़ जाते हैं, तब आत्मा हल्की हो जाती है। कर्म के कारण ही संसार परिभ्रमण होता है, चार गतियों में यह जीवात्मा भटकती है।
· उदाहरण-एक बार महात्मा बुद्ध के शिष्यों में विवाद छिड़ गया कि “आत्मा का कौन-सा दुर्गुण है, जो आत्मा का पतन करता है ?” जिसमें एक शिष्य बोला“आत्मा का पतन करने वाली शराब है।" किसी ने धन को, किसी ने परस्त्रीगमन को, किसी ने माँस को, किसी ने जुआ, चोरी, वेश्यागमन। ऐसे करते-करते विवाद बढ़ता गया। अन्त में समाधान नहीं हो पाया। आखिरकार सभी शिष्य महात्मा बुद्ध के चरणों में उपस्थित हो गये। महात्मा बुद्ध ने सकल चर्चा को दृष्टिगोचर कर लिया
और जरा-सा मुस्कराये। अपने शिष्यों को सम्बोधित कर बोले-“हे भिक्षुओ ! जरा ध्यान से सुनो-एक व्यक्ति है, उसके पास एक छिद्ररहित सूखा हुआ तुम्बा है, उसे ले जाकर तालाब के पानी के ऊपर छोड़ देता है, क्या वह तुम्बा डूबेगा या तिरेगा?'
“प्रभु ! वह तुम्बा तो तैरेगा।” “अगर उसी तुम्बे में छिद्र कर दिया जाता है, तब क्या वह डूबेगा या तिरेगा?' "भगवन् ! वह तुम्बा तो पानी में डूब जायेगा।" तब महात्मा बुद्ध ने कहा-“हे भिक्षुओ ! जैसे अनेक छिद्रयुक्त हों या एक छिद्रयुक्त, छिद्रता उस तुम्बे को डुबोयेगा। ठीक उसी प्रकार क्रोध, मान, माया और लोभ, राग और द्वेषादि सभी दुर्गुण आत्मा का पतन करने वाले हैं, आत्मा को बीच मझधार में डुबोने वाले हैं। एक हो या अनेक आत्मा के सहज गुणों को नष्ट करने वाले हैं। तात्पर्य यह है कि राग और द्वेष से आत्मा कर्मों से बोझिल हो जाती है। मनुष्य-मनुष्य में झगड़ा, द्वेष इतना कि. उसके कुत्ते तक से नफरत हो जाती है। यदि वह दिखाई दे जाये तो उस पर पत्थरों की मार करने लग जाता है। यह सब राग-द्वेष के वशीभूत होकर होता है। इष्टोपदेश में कहा है
“राग-द्वेषादि कल्लोलैरलोलं यन्मनो जलम्।
स पश्यत्यात्मनस्तत्त्वं यत् तत्त्वं नेतरो जनः।।" -राग-द्वेष की तरंगों से जिसका मनरूपी जल चंचल नहीं होता, वह आत्मतत्त्व को पहचान पाता है, इतर प्राणी नहीं। अर्थात् आत्मा को वही पहचानेगा, जो राग-द्वेष से ऊँचा उठ जायेगा। ‘आचारांगसूत्र' में टीकाकार ने अतिसुन्दर उपमा देते हुए कहा है-कोई व्यक्ति घर के बाहर चबूतरे पर पैर धोता है और गीले पाँव भीतर चला जाता है, साफ-सुथरा फर्श भी धूल से गन्दा हो जाता है। जैसे गीले पाँव में धूल चिपट जाती है, ऐसे ही राग-द्वेष भी आत्मा से अतिशीघ्र चिपट जाते