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________________ छठा फल : श्रुतिरागमस्य : आगम-श्रमण १३९ अतः सत्य क्या है ? इसका उत्तर उन्होंने दिया - “ श्रोतव्य-श्रवण ही सत्य है और वही पवित्र ( शौच ) है । धर्म - श्रवण करने से बढ़कर अन्य कोई शौच नहीं है। धर्मोपदेश- श्रवण : उत्तम गुणों के अर्जन के लिए जिन वचनों के पुनः-पुनः श्रवण करने से मुख्यतया तीन गुण उपलब्ध होते हैं । जैसा कि 'सावय पणत्ति' (३) में कहा है "नव-नव संवेगो खलु, नाणावरण खओवसमभावो । तत्ताहिगमो य तहा, जिणवयण सवणस्स गुणा ॥” (१) मोक्ष की अभिलाषा स्फुरित होती है, (२) ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, और (३) तत्त्वज्ञान की उपलब्धि होती है। जिनवचन - श्रवण से ये तीन लाभ होते हैं। उपदेश - श्रवण करने से सच्चा श्रोता चार गुणों को धारण करता है। जैसे कि विंशतिविंशिका ( १ / १८) में कहा है "मज्झत्थपाइ नियमा, सुबुद्धि जोएण अत्थियाए य। नज्जइ तत्तविसेसो, न अन्नहा इत्थ जइयव्वं ॥” उपदेश-श्रवण से मध्यस्थता, नियमितता, उत्तम बुद्धि का योग और अर्थिता ( उद्देश्य के अनुकूल पुरुषार्थ करने की योग्यता ) आती है और इनके कारण तत्त्वबोध होता है। इसमें कोई अन्यथा नहीं है। अतः इन गुणों के उपार्जन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। जो महामानव अपने हाथों से दान कर देता है, मस्तक को गुरुजनों के समक्ष झुकाता है, मुख से सत्य बोलता है, कानों से शास्त्र - श्रवण करता है तथा हृदय को स्वच्छ रखते हुए अपने पुरुषार्थ के बल पर सफलता हासिल करता है। उस पुरुषोत्तम को प्रकृति बिना ऐश्वर्य के भी सुन्दरता प्रदान करती है।. मनुष्य के सद्गुण ही उसके सच्चे आभूषण होते हैं तथा उसका शुद्ध और निष्कपट. हृदय आभूषणों का पिटारा है। महाकवि शेक्सपियर ने कहा भी है "A good heart is worth gold." - सुन्दर हृदय का मूल्य स्वर्ण के सदृश्य है । इसलिए हमारा शरीर सद्गुणरूपी अलंकारों से अलंकृत हो । उन अलंकारों में से एक अलंकार शास्त्र - श्रवण है जोकि हमारे जीवन का निर्माता है। शास्त्रों का श्रवण करने से ही बुद्धि का विकास होता है । मानसिक बल बढ़ता है तथा आत्मिक गुण प्रकाशित होते हैं। जो व्यक्ति जिन-वचनों पर विश्वास नहीं
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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