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________________ | * १३४ * *पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * | में धारण करते तो वह प्राणी निकुष्ट गति में नहीं जाता ऐसा जिनराज का कथन है। एक बात और कही गई है कि सतगुरु के वचन को जो दिल में रख ले अर्थात् उसे ग्रहण कर ले तो वह कुगति में नहीं जाता। सुनने का सार भी यही है कि उसे ग्रहण किया जाये। भले ही व्यक्ति प्रतिदिन का सुना हुआ सभी याद न रख सके पर दो शब्द या दो वाक्य भी वह हृदयंगम कर ले तो धीरे-धीरे हृदय में ज्ञान का उज्ज्वल आलोक जरूर प्रसारित होगा। एक न एक दिन आत्मा के द्वारा खुलेंगे तथा उसमें धर्म का प्रवेश होकर रहेगा। सशास्त्र श्रवण से जीव को क्या लाभ ? देवाधिदेव भगवान महावीर से पृच्छा की-“भंते ! सशास्त्र का श्रवण करने से जीव को क्या लाभ प्राप्त होता है?" उत्तर-"ज्ञान की प्राप्ति होती है।" भगवान ने फरमाया है-“हे जीवात्माओ ! यदि आत्मा को जाग्रत करना चाहते हो तो ज्ञान का उपार्जन करो। ज्ञान से आत्मा को आलोकित किया जाता है।" इसलिए ‘दशवैकालिकसूत्र' में कहा है “पढमं नाणं तओ दया।" -सबसे पहला स्थान ज्ञान का है और उसके बाद दया अर्थात् क्रिया है, आचरण है। आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने कहा है “ज्ञानक्रियाभ्याम् मोक्षः।” __-ज्ञान और क्रिया को मुक्ति का उपाय बताया है। अज्ञानी जिसे साध्य साधन का भी ज्ञान नहीं है, वह क्या कर सकता है? वह अपने कल्याण और अकल्याण को भी कैसे जान संकता है ? भगवान महावीर ने ‘दशवैकालिकसूत्र' में कड़ी से कड़ी पिरोकर कहा है “सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं। उभयपि जाणइ सोच्चा, जं सेयं तं समायरे॥" अर्थात् सुनकर ही कल्याण को जानता है, सुनकर ही पाप को जानता है और दोनों को भी सुनकर ही जानता है, अतः जो आत्मा के लिए हितकारी हो, उसका आचरण करो। "जो जीव के स्वरूप को नहीं जानता और अजीव के स्वरूप को नहीं जानता, इस प्रकार जीवाजीव के स्वरूप को नहीं जानने वाला वह साधक संयम को कैसे जानेगा? नहीं जान सकता।"
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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