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________________ पाँचवाँ फल : गुणानुराग मनुष्य- जन्मरूपी वृक्ष के छह फल बताए गए हैं। जिसमें से पहला जिनेन्द्र पूजा, दूसरा गुरु की सेवा, तीसरा प्राणीमात्र पर दया करना और चौथा है सत् पात्र को दान देना । इन चारों का वर्णन पिछले चार व्याख्यानों में कर आए। अब पाँचवाँ फल जोकि गुणानुराग है, उस पर विचार चर्चा करनी है। गुणानुराग गुणानुराग का अर्थ है - गुणों को देखकर प्रेम भाव उत्पन्न होना तथा हृदय में प्रसन्नता का भाव आना। गुणों के प्रति अनुराग रखना गुणानुवाद कहा जाता है। जिन व्यक्तियों का गुणों के प्रति अनुराग होता है, वे दूसरों के गुणों को देखकर प्रमुदित होते हैं। दानी पुरुष को देखकर उसकी सहायता करते हैं। तपस्वी को देखकर मन में श्रद्धा का भाव लाते हैं । शीलवान् के प्रति अपना मस्तक झुकाते हैं तथा संयमी के लिए हृदय में पूज्य भावना रखते हैं । इसी प्रकार जिस व्यक्ति में जो भी गुण होता है, उसके लिए वे महान् आदर का भाव रखते हैं। गुणानुरागी व्यक्ति सदैव यही भावना रखता है। मेरी भावना “गुणी जनों को देख हृदय में, मेरे प्रेम उमड़ आये । बने जहाँ तक उनकी सेवा, करके यह मन सुख पावे ॥ होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे। गुण ग्रहण का भाव रहे नित, दृष्टि न दोषों पर जावे ॥” - गुणीजनों को देखकर मेरा मन खुशी से भर जाए, भले ही मुझमें गुणों का अभाव. हो। त्याग, तपस्या आदि मुझसे न हो पाएँ और धन के अभाव में दान का अभाव भी न उठा सकूँ। पर मैं चाहता हूँ कि गुगज्ञ पुरुषों की सेवा अपनी शक्ति के अनुसार करूँ तथा उससे ही मन में असीम प्रसन्नता का अनुभव करूँ । गुणों का महत्त्व भारत में प्राचीनकाल से ही गुणीजनों का आदर-सत्कार होता आया है । यहाँ
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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