________________
| * १२२ *
* पद्म-पुष्प की अमर सौरभ *
से अपने हिस्से का लिया था, सब-का-सब मुनि के पात्र में बहरा दिया। उस सुपात्रदान के प्रभाव से उसे शुभ गति और शुभ योनि का आयुष्य बंध हुआ। .. चन्दनबाला जिस समय धनावह सेठ के घर पर तीन दिन के उपवास के साथ दहलीज पर बैठी थी। पारणे के लिए सिर्फ उड़द के बाँकुले ही थे परन्तु उस परवश चन्दनबाला के मन में दान देकर पारणा करने की भावना उमड़ी। संयोगवश कठोर अभिग्रह धारक भगवान महावीर पधार गए। उन्होंने अपने मनःसंकल्पित अभिग्रह की १३ बातों में से सिर्फ एक बात की कमी देखी-आँखों में अश्रु। इसलिए लौटने लगे। बस, चन्दनबाला की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। दीर्घ तपस्वी भगवान वापस मुड़े। चन्दनबाला ने अपने पारणे के लिए रखे हुए वे उड़द के बाँकुले प्रबल भावनापूर्वक भगवान महावीर को दिये। वह धन्य हो उठी। उड़द के बाँकुले का क्या मूल्य था? मूल्य तो भावना का था जिसने चन्दनबाला को दान के माध्यम से उच्च पद पर पहुँचा दिया। सुपात्र को दिया हुआ कभी निष्फल नहीं जाता। . विदुरानी के केले के छिलकों का क्या महत्त्व था? परन्तु कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने विदुरानी के दिये हुए केले के छिलकों को न देखकर उसके पवित्र भावों को देखा और उसका वह भोजन स्वीकृत किया। शबरी के दिए हुए झूठे बेरों का मूल्यांकन क्यों इतना अधिक किया गया है। इसीलिए कि उसके पीछे सुपात्रदान व उत्कट भक्ति-भावना थी महाभारत में (शान्ति पर्व) में इसी बात की पुष्टि की गई है
“सहनशक्तिश्च शतं, शतशक्तिर्दशाऽपि च।
दद्यादपश्च यः शक्त्या, सर्वे तुल्यफलाः स्मृताः॥" -यदि हजार रुपयों की शक्ति वाले ने सौ रुपये, सौ रुपये की शक्ति वाले ने दस रुपये दिये और किसी ने अपनी शक्ति अनुसार चाहे थोड़ा-सा पानी भी सुपात्र को दान में दिया तो ज्ञानी पुरुषों ने इन सब का फल समान बतलाया है।
। “अप्पास्मा दक्खिणा दिन्ना, सहस्सेन समं मताः।" ..
चाहे थोड़ा दें परन्तु शुद्ध भावों से दें अपनी ओर से सुपात्र को जानकर जो विशेष उत्कट भावों से दान देता है वह थोड़ा-सा दान भी हजारों लाखों के दान की बराबरी करता है।