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________________ * १२० * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * शालिभद्र अपने पूर्व-जन्म में संगम नाम का ग्वाला था। उसकी माँ आसपास में धनिकों के यहाँ का गृहकार्य करने से जो कुछ मिलता उसी से अपना पेट और बेटे की गुजर-बसर करती थी। एक बार संगम धनिकों के बच्चों से खीर खाने की बात सुनकर मचल पड़ा खीर खाने के लिए, परन्तु गरीब माता उसे खीर कहाँ से देती। बहुत समझाया, पर उसने तो हठ ही पकड़ ली। उसे रोते देख सेठानियों ने उसकी माँ को खीर की सामग्री दी। माता ने खीर बनाकर दी तथा कहा-"बेटा ! मैं अब काम पर जा रही हूँ, थाली में ठण्डी करके तू खीर खा लेना।'' खीर थाली में ठण्डी हो रही थी, तभी एक मासिक उपवासी मुनिवर पारणे के लिए भिक्षार्थ पधारते हुए देखे। संगम की भावना जागी कि मैं भी यह खीर ऐसे तपस्वी मुनि को दे दूं तो कितना अच्छा हो। बस मुनिराज को प्रार्थना करके वह बुला लाया। थाली में जो खीर थी वह मुनि के पात्र में उच्च भावों से बहराने लगा। सोचा-'मैं तो फिर खा लूँगा, ऐसे तपस्वी मुनि का संयोग फिर कहाँ मिलेगा।' क्योंकि प्रभु ने फरमाया है “देता भावे भावना, लेता करे सन्तोष। कहे वीर सुन गोयमा ! दोनों जावें मोक्ष॥" सारी की सारी खीर उसने मुनिराज को प्रबल उल्लास से दी। मुनिराज भी शुद्ध भावों से आहार लेकर पधार गए। उसी दान के प्रबल परिणाम के फलस्वरूप राजगृह नगर के सबसे अधिक धनाढ्य गोभद्र सेठ के पुत्र के रूप में उसे जन्म मिला। खीर का क्या मूल्य था परन्तु उसने सुपात्र को अपना सर्वस्व दिया था। ... निष्कर्ष यह है कि संगम ने अपनी गरीबी को न देखकर सुपात्र को थोड़ा-सा दान दिया। बदले में उसने लाखों करोड़ों गुना पाया। ‘पद्मपुराण' में भी स्पष्ट कहा "दानं दरिद्रस्य विभोः क्षमित्वं, यूनां तपो ज्ञानवतां च मौनम्। इच्छानिवृत्तिश्च सुखोचितानां, दया च भूतेषु दिवं नयन्ति॥" अर्थात् दरिद्र का दान, सामर्थ्यशील की क्षमा, युवकों का तप, ज्ञानियों का मौन, सुख भोग के योग्य पुरुष की स्वेच्छा निवृत्ति, समस्त प्राणियों पर दया, ये सब गुण स्वर्ग में ले जाते हैं। सुपात्रदान का अचिन्त्य फल ऋषभपुर नगरवासी अभयंकर सेठ जितना धनिक था, उतना ही दान में शूरवीर था। उनके यहाँ चारुमति नाम का एक नौकर था। वह सेठ-सेठानी को प्रबल भावना से दान देते देख मन में सोचा करता-'धन्य है इनको। कितने उत्कट
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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