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________________ * ११६ * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * कौशाम्बी के राजा शतानीक ने चम्पानगरी पर चढ़ाई कर दी। लूटमार मचा दी। युद्ध में दधिवाहन राजा मारा गया। धारिणी एवं चन्दनबाला एक रथवान के साथ चल दी। रास्ते में रथवान की दृष्टि बदल गई। विकारमय हो गई। महारानी धारिणी को मन की बात कही। शील-रक्षा हेतु जुबान खींची, आत्महत्या कर ली। चन्दना घबरा गई। रथवान ने देखा, घबरा गया। चन्दना भागने को हुई। रथवान ने आवाज दी-“हे वसुमती ! घबराओ नहीं, मैं आपकी रक्षा करूँगा।" उसको घर पर ले आया। घर वाली कलहकारिणी। “घर में इसको नहीं रखूगी। जाओ बाजार में बेच आओ।" बाजार में लाकर खड़ा कर दिया। एक वेश्या आई। उसने देखा। सवा लाख स्वर्ण सोनैया का मूल्य हो गया। “मेरे साथ चलो।" “कहाँ पर?" "मेरे साथ।" "मेरे से क्या काम लोगी?" "बस खाना-पीना, नये-नये कपड़ों को पहनना और राजा, मन्त्री, सेठ, साहूकार आदि-आदि लोगों की वासनापूर्ति करना।" "नहीं, नहीं, ऐसा कभी भी नहीं हो सकता।" वेश्या कहती है। वसुमती मना करती है। आपस में खींचातानी हो गई। वसुमती ने महामंत्र नवकार का ध्यान लगाया। पंच परमेष्ठि अधिष्ठायक देव ने बन्दरों का उपद्रव मचाया तो वेश्या घबरा गई। इतने में कौशाम्बी नगरी का प्रसिद्ध सेठ धनावाह आ पहुँचा। उसने देखा-यह क्या हो रहा है? सेठ आगे बढ़ा, उस कन्या को अपने घर पर ले आया। सवा लाख स्वर्ण सोनैया वापस कर दी। पुत्री बनाकर अपने घर में रख लिया। सेठ की सेठानी मूला। सेठ का कहीं कार्यवशात् जाना हुआ। पीछे से मूला सेठानी ने सिर मुण्डित कर, हाथों में हथकड़ियाँ, पैरों में बेड़ियाँ, नीचे तलघर में छोड़ दिया। वह अपने पीहर चली गई। सेठ आया। चन्दनबाला पुकारा। तलघर में देखा। यह सब देखकर आश्चर्यचकित। लुहार लेने गया। दरवाजे की दहलीज में है। मुण्डित मस्तक वाली, तन पर पूरे वस्त्र भी नहीं हैं। एक पाँव दहलीज के अन्दर है और दूसरा बाहर। हँस रही है और रो भी रही है। करुणासिन्धु भिक्षु महावीर आये हैं। खाने के लिए चन्दनबाला के हाथ सूप और उसमें उड़द के बाँकुले हैं। तीन दिन से भूखी-प्यासी है। भावना भाई। भगवान आये। आहार लिया। देवों द्वारा पुष्प वृष्टि। सिर पर पूर्ण केश। तन पर वस्त्र-आभूषण पहले की तरह शोभित हो गये। यह सब सुपात्रदान का महत्त्व है।
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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