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________________ किसी न किसी रूप में प्राप्त होते हैं, पतंजलि से पूर्ववर्ती हैं। पतंजलि ने इन सभी को संकलित किया है और उनकी पद्धतियों के विश्लेषण में न पड़कर उनकी दार्शनिक समीक्षा की है, योग साधना के दर्शन को प्रस्तुत किया है । ' किन्तु संकलनकर्ता होने से पतंजलि का महत्व कम नहीं हो जाता। उनका कार्य महान है। उन्होंने इधर-उधर बिखरे हुए योग सम्बन्धी विचारों, मान्यताओं, सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं तथा उनसे प्राप्त विशिष्ट शक्तियों - लब्धियों को संकलित किया और सुव्यवस्थित ढ़ंग से सजाकर एक दर्शन का रूप दे दिया, सर्वजनोपयोगी बना दिया । इस दृष्टि से उन्हें योगदर्शनकार स्वीकार किया ही जाना चाहिए। बाद के मनीषियों ने योगदर्शनकार के गौरवपूर्ण पद से उन्हें उचित ही सम्मानित किया है। पातंजल योगदर्शन का दार्शनिक आधार जिस प्रकार भक्ति योग का आधार श्रीमद्भागवत है उसी प्रकार ज्ञान योग का आधार कपिलमुनि का सांख्यदर्शन है। दार्शनिक आधार अथवा पृष्ठभूमि के रूप में सांख्यदर्शन काफी प्रभावशाली रहा है। श्रीमद्भगवद् गीता का दार्शनिक आधार भी सांख्यदर्शन है। किन्तु योगदर्शन का तो दार्शनिक मेरुदण्ड ही सांख्यदर्शन है। यही कारण है कि योगदर्शन के साथ 'सांख्य' शब्द जुड़ ही गया और विद्वत् समाज में तथा दार्शनिक जगत् में 'सांख्य- योग' के रूप में प्रसिद्ध हुआ । आत्मा, परमात्मा आदि सम्बन्धी योगदर्शन की सभी मान्यताएँ सांख्यसम्मत ही हैं। पातंजल योगदर्शन पर अन्य दर्शनों का प्रभाव जैसा कि स्वाभाविक है, एक देश में पनपने वाली विचारधाराएँ परस्पर एक-दूसरे से प्रभावित होती ही हैं, फिर योगदर्शन तो तत्कालीन अध्यात्म साधनाओं के योग सम्बन्धी विचारों का संकलन है। अतः इस पर तो अन्य दर्शनों का प्रभाव होना सामान्य सी बात है । ईश्वरप्रणिधान आदि बातें वेदान्त की भक्तिमार्गीय शाखा का स्पष्ट प्रभाव है। इसी प्रकार अन्य दर्शनों का भी प्रभाव परिलक्षित होता है। महामहोपाध्याय डॉ. ब्रह्ममित्र अवस्थी योगदर्शन पर बौद्धदर्शन का प्रभाव अधिक मानते हैं। अपनी मान्यता के प्रमाणस्वरूप उन्होंने 'विपर्यय', 'विकल्प', 'प्रत्यय', 'कर्माशय', 'कर्मविपाक' आदि शब्दों का उल्लेख किया है जो दोनों ही दर्शनों में सामान्य रूप से प्रयुक्त हैं। यह कोई आश्चर्य की. बात नहीं है। थोड़ा-बहुत प्रभाव बौद्धधर्म का योगशास्त्र पर हो सकता है। * 26 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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