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वैदिक साहित्य में योग शब्द प्राचीन साहित्य में सर्वप्रथम ऋग्वेद में 'योग' शब्द मिलता है, यहाँ इसका अर्थ 'जोड़ना' मात्र है।'
ईसा पूर्व 700-800 तक निर्मित साहित्य में 'योग' शब्द 'इन्द्रियों को प्रवृत्त करना' इस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है तथा ई. पू. 500-600 तक रचित साहित्य में 'इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना' इस अर्थ में 'योग' शब्द का प्रयोग हुआ है।
उपनिषद् साहित्य में 'योग' पूर्णतः आध्यात्मिक अर्थ में प्रयुक्त हुआ मिलता है। कुछ उपनिषदों में योग और योग-साधना का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। मैत्रेयी और श्वेताश्वतर उपनिषदों में तो योग की विकसित भूमिका प्रस्तुत की गई है। यहाँ तक कि योग, योगोचित स्थान, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, कुण्डलिनी विविध प्रकार के मन्त्र, जप और जप की विधि आदि का विस्तृत विवरण इन उपनिषदों में प्राप्त होता है।
इस प्रकार ऋग्वेद में ‘जोड़ने' के अर्थ में प्रयुक्त शब्द 'योग' उपनिषद्
1. (क) स घा नो योग आ भुवत्।
-ऋग्वेद, 1/5/3 (ख) स धीनां योगमिन्वति।
-वही, 1/18/7 (ग) कदा योगो वाजिनो रासभस्य।
-वही, 1/34/9 (घ) वाजयन्निव नू रथान् योगां अग्नेरूपस्तुहि। -वही, 2/8/1 इत्यादि 2 Philosophical Essays, p. 179. 3. (क) अध्यात्मयोगाधिगमेन देवं मत्वा धीरो हर्ष-शोकौ जहाति।
-कठोपनिषद् 1/2/12 (ख) तां योगमितिमन्यन्ते स्थिरामिन्द्रियधारणाम्। __ अप्रमत्तस्तदा भवति योगो हि प्रभवाप्ययौ।।
-वही, 2/3/11 (ग) तैत्तिरीयोपनिषद् 2/14 (1) योगराजोपनिषद्, (2) अद्वयतारकोपनिषद्, (3) अमृतनादोपनिषद्, (4) त्रिशिख ब्राह्मणोपनिषद्, (5) दर्शनोपनिषद्, (6) ध्यानबिन्दु उपनिषद्, (7) हंस, (8) ब्रह्मविद्या, (9) शाण्डिल्य, (10) वाराह, (11) योगशिख, (12) योगतत्व, (13) योग चूड़ामणि, (14) महावाक्य, (15) योगकुण्डली, (16) मण्डल ब्राह्मण, (17) पाशुपत ब्राह्मण, (18) नादबिन्दु, (19) तेजोबिन्दु, (20) अमृतबिन्दु, (21) मुक्तिकोपनिषद्-इन 21 उपनिषदों में योग का ही वर्णन हुआ है।
• योग की परिभाषा और परम्परा * 13 *