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________________ परिशिष्ट : 4 अभिमत/प्रशस्ति पत्र प्रस्तुत पुस्तक लगभग 28 वर्ष पूर्व (1983) में "जैन योग सिद्धान्त और साधना" के नाम से प्रकाशित हुई थी। उस समय के अग्रगण्य महामहिम मुनिराजों ने इस श्रेष्ठ कृति के प्रति अपने जो विचार व्यक्त किए थे उन्हें पुस्तक में स्थान दिया गया था। द्वितीय संस्करण में यह पुस्तक 'अध्यात्म योग साधना' नाम से प्रकाशित की जा रही है। पूर्व संस्करण में प्रकाशित महामहिम मुनिराजों के तत्कालीन अभिमतों-सम्मतियों को प्रस्तुत संस्करण में भी यथारूप ग्रहण किया जा रहा है। -सम्पादक मंगल-भावना ___ जैन धर्म दिवाकर स्व. आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी महाराज ज्ञान एवं क्रिया के मूर्तिमन्त स्वरूप थे। जैन आगमों के गम्भीर ज्ञान के साथ ही भारतीय विद्या-क्षेत्र में उनकी गहरी पैठ थी। साहित्य के विविध क्षेत्रों में उन्होंने जो नव सर्जन कर ज्ञान का आलोक फैलाया, वह युग-युग तक स्मरणीय रहेगा। स्व. आचार्य श्री जी की एक अमर कृति है "जैनागमों में अष्टांग योग"। इस लघु पुस्तक में बड़ी ही सुन्दर व सारपूर्ण शैली में भारतीय योग विद्या पर तुलनात्मक रूप से जो चिन्तन प्रस्तुत किया गया है वह पढ़ने में आज भी नवीन और मननीय लगता है-यही उनकी गंभीर विद्वत्ता की प्रत्यक्ष परिचायक है। वर्तमान में योग का विषय काफी व्यापक एवं जीवनस्पर्शी हो गया है। पाठकों में योगविद्या के प्रति रुचि बढ़ी है। इस दृष्टि को ध्यान में रखकर भंडारी श्री पद्मचन्द जी महाराज के सुशिष्य श्री अमर मुनि जी ने उक्त पुस्तक का जो नवीन परिवर्द्धित एवं परिष्कृत संस्करण तैयार किया है, वह वास्तव में ही सर्वजनोपयोगी सिद्ध होगा और श्रद्धेय आचार्य श्री के प्रति एक सच्ची श्रद्धाञ्जलि माना जायेगा... पंचवटी, नासिक .. -आचार्य आनन्द ऋषि .००० * 422 * परिशिष्ट .
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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