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नवकार मंत्र के पाँच पद और ये चार पद मिलकर नवपद कहलाते हैं तथा इन्हीं को सिद्धचक्र कहा जाता है।
साधक जब तक इन सभी (नौ) पदों का अलग-अलग ध्यान एवं जप करता है तब तक वह नवपद का ध्यान - जप- साधना कहलाती है और जब अष्टदल कमल (हृदय - कमल आदि) के रूप में जाप करता है, ध्यान और साधना करता है, तब वह सिद्धचक्र की ध्यान-साधना कहलाती है।
अंतर आत्मामां सिद्धचक्ररी मांडणी
-नमो सिद्धाणं
नमो उवज्झायाणं नमो लोएसव्वसाहूणं - नमो आयरियाणं
नमो दंसणस्स
नमो णाणस्स नमो चरित्तस्स नमो वस्स
नमो अरिहंताणं