________________
‘णमो आयरियाणं' पद की साधना से साधक की बौद्धिक शक्तियाँ और क्षमताएँ विकसित होती हैं, प्रातिभ और अतीन्द्रिय ज्ञान की प्राप्ति होती है। शरीर से दिव्य सुगन्धि प्रसृत होती है। आचार शुद्धि एवं अनुशासन शक्ति विकसित होती है।
‘णमो उवज्झायाणं' पद की साधना से साधक को मानसिक शान्ति की उपलब्धि होती है, स्मरण शक्ति प्रखर एवं धारणा शक्ति सुदृढ़ होती है। विकट समस्याओं का भी अनायास समाधान हो जाता है, अमृत के समान अनुपम रस की अनुभूति होती रहती है।
'णमो लोए सव्वसाहूणं' पद की साधना से साधक की काम वासना, विषय भोगों और काम-भोगों की इच्छा समाप्त हो जाती है, उसके लिए बाह्य कर्कश एवं कठोर स्पर्श भी दु:खदायी नहीं रहते, दु:खद अनुभूतियाँ सुखद हो जाती हैं।
साधना की एक और विधि . नवकार मंत्र के पाँचों पदों की साधना की साधक के लिए एक और सरल विधि है।
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-शुद्धि करके साधक किसी भी आसन में अवस्थित होकर ध्यान करना शुरू करे।
चिन्तन करे कि वह एक पर्वत शिखर पर बैठा है। पर्वत तथा संपूर्ण सृष्टि और यहाँ तक कि स्वयं को भी स्फटिक के समान श्वेत रंग का देखे, चिन्तन करे। ऐसा ध्यान करे कि रात्रि का चौथा प्रहर है। उसके शुभ्रचिन्तन · से संपूर्ण दिशा-विदिशाएँ श्वेत हो गई हैं तथा शुभ्र चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना से संपूर्ण अग-जग नहा रहा है। अत्यन्त चमकीला, किरणें बिखेरता हुआ कोटि चन्द्रों की प्रभा से भी अधिक प्रभावान ‘णमो अरिहंताणं' पद आकाश में उभर रहा है और अधिकाधिक चमकीला होता जा रहा है।
इस प्रकार ‘णमो अरिहंताणं' पद की साधना करे।
फिर ऐसा चिन्तन करे कि प्रात:कालीन सूर्य (बाल सूर्य) का उदय हो रहा है, जिससे सम्पूर्ण दिशा-विदिशायें लाल हो गई हैं। कोटि सूर्यों की प्रभा को भी लज्जित करता हुआ, अरुण वर्ण की रश्मियाँ बिखेरता हुआ 'णमो सिद्धाणं' पद उभर आया है। उसने साधक को भी अरुण कर दिया है।
* नवकार महामंत्र की साधना * 383 *