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चौथे सोपान में आचार्य के स्वरूप का ध्यान करें। स्व-पर- प्रकाशक दीपशिखा के समान पीत वर्ण की साधना करें, देखें और अपने शरीर के कण-कण और अणु-अणु से निकलती पीले रंग की प्रभा को देखें।
योगशास्त्रों में विशुद्धि केन्द्र का काफी महत्व है। इसका स्थान कंठ है। यह प्राणी के आवेगों-संवेगों को नियन्त्रित करता है। वैज्ञानिक यहाँ थाइराइड ग्रंथि मानते हैं और उसे आवेगों का नियामक स्वीकार करते हैं।
पीला रंग ज्ञान वृद्धि में सहायक होता है, ज्ञान तंतुओं को बलशाली बनाता है।
विशुद्धि केन्द्र, पीले रंग और ' णमो आयरियाणं' पद - इन तीनों के संयोजित ध्यान-साधना से साधक के आवेग - संवेगों का नाश होता है, उसकी चित्तवृत्तियाँ उपशांत होती हैं।
यह नवकार मंत्र के तीसरे पद ' णमो आयरियाणं' की साधना है। णमो उवज्झायाणं
इस पद का ध्यान आनन्द केन्द्र (हृदय कमल) में मन को एकाग्र करके किंया जाता है तथा इस पद का वर्ण निरभ्र आकाश जैसा नील वर्ण है।
इस पद की साधना के भी चार सोपान हैं। प्रथम सोपान में साधक अक्षरों का ध्यान करता है। दूसरे सोपान में पूरे पद का ध्यान करता है। तीसरे सोपान में इस पद के अर्थ का तथा उपाध्यायजी के गुणों का चिन्तन साधक करता है। चौथे पंद में वह उपाध्याय जी के स्वरूप का ध्यान करता है।
यह संपूर्ण ध्यान साधक निरभ्र आकाश के समान नीले रंग में करता है। नीला रंग शांति- प्रदायक है, तथा कषायों और उनके आवेग को शांत करता है। जैसे - क्रोध के आवेग के समय यदि साधक नीले रंग का ध्यान करे तो क्रोध उपशांत हो जायेगा। यह रंग आत्मसाक्षात्कार में भी सहायक तथा समाधि और चित्त की एकाग्रता में निमित्त बनता है।
आनंद केन्द्र, नीले रंग और ' णमो उवज्झायाणं' पद - इन तीनों के संयोग से साधक की हृदयगत कषायधारा उपशांत होती है, उसकी चित्तवृत्ति एकाग्र होती है तथा समाधि में साधक अवस्थित होता है।
यह नवकार मंत्र के चौथे पद ' णमो उवज्झायाणं' की साधना है।
* नवकार महामंत्र की साधना 381