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आत्मिक उन्नति और शाश्वत सुख का साधन बन जाती है; और यदि यह प्राण साधना और प्राणशक्ति को ही तेजस्वी बनाने में लगी रहती है, वहीं अपनी सीमा और लक्ष्य निर्धारित कर लेती है तो यह मानसिक और शारीरिक शांति, नीरोगता, स्वास्थ्य और अद्भुत कार्यों के प्रदर्शन में तो सक्षम हो जाती है; किन्तु आत्मिक प्रगति में योगदान नहीं दे पाती।
अतः आत्मिक सुख के लिए प्रयत्नशील साधक को प्राणशक्ति का उपयोग आध्यात्मिक उन्नति में करना चाहिए। उसके लिए प्राणशक्ति द्वारा प्राप्त विशिष्ट क्षमताओं एवं अद्भुत शक्तियों के प्रदर्शन के लोभ में अपनी शक्ति को गंवाना उचित नहीं है।
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* प्राण-शक्ति की अद्भुत क्षमता और शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता 363