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________________ वह वस्तु उसे अप्रिय लगने लगती है। इस दोगली मनोवृत्ति को मनश्चिकित्साशास्त्र में 'कैटटोनिक शिजीफ्रेनिया' कहा गया है। तनावग्रस्त व्यक्ति अन्दर ही अन्दर भयभीत रहते हैं। जब व्यक्ति में तनाव आर्थिक हानि, प्रियजनों के बिछोह, विश्वासघात, अपमान, अप्रत्याशित आघात, असफलता आदि के कारण उत्पन्न होता है तो वह हर समय भयभीत रहने लगता है। इस भय की भावना को मनश्चिकित्सा शास्त्र में 'फेगबिया या फोबिक न्यूरोसिस' कहा गया है। इनका वर्गीकरण किया गया है-1 मृत्यु का भय (मोनो फ्रीबिया), पाप का भय (थैनिटो-फ्रीबिया), काम विकृति आतंक (पैकाटोफ्रीबिया), रोग का भय (गाइनो फ्रीबिया), विपत्ति का भय (नोजोफ्रीबिया), अजनबी का भय (पैंथो फ्रीबिया) आदि-आदि। तनाव किसी भी प्रकार का हो-उत्तेजना से अथवा भय से, है यह जीवन-शक्ति का विनाशक ही। अतः जितना शीघ्र हो सके मनुष्य को तनाव-मुक्त हो जाना चाहिए और जहाँ तक संभव हो सके तनावग्रस्त होना ही नहीं चाहिए। तनाव-मुक्ति के कुछ उपाय वैज्ञानिकों ने सुझाये हैं, यथा__(1) उदारता का दृष्टिकोण रखिए। (2) मनोरंजन को जीवन में उचित स्थान दीजिए। (3) हँसने की आदत डालिए। (4)अधिकाधिक व्यस्त रहने का प्रयास करिए, आदि-आदि। लेकिन तनाव-मुक्ति के ये सभी उपचार अस्थायी हैं, ठीक वैसे ही जैसे क्रोध या भय का आवेग आने पर एक गिलास ठण्डा पानी पी लेना। ऐसे उपायों से अस्थायी शान्ति तो मिल सकती है। किन्तु स्थायी शान्ति नहीं प्राप्त हो सकती। तनावों के विसर्जन और स्थायी शान्ति के लिए योग ही एक मात्र उपाय है। साधक यौगिक क्रियाओं के माध्यम से स्वयं को तनावमुक्त रखता है। तुलना करिये, जैन शास्त्रों में वर्णित सप्त भयों से-(1) इहलोक भय, (2) परलोक भय, (3) आदान भय या अत्राणभय, (4) अकस्मात भय, (5) आजीविका भय या वेदना भय, (6) अपयश भय या अश्लोक भय (7) मरण भय। -स्थानांग, स्थान 7 * प्राण-शक्ति की अद्भुत क्षमता और शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता * 359 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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