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________________ जाती है। दूसरे शब्दों में कषायों (आध्यात्मिक दोषों), मानसिक तनावों, शारीरिक रोगों तथा विकृत हारमोन्स (Harmones) की शुद्धि होती है। तेजोलेश्या ध्यान और लाल (अरुण) रंग . तेजोलेश्या वाले व्यक्ति का स्वभाव नम्र और अचपल होता है। वह जितेन्द्रिय, तपस्वी, पापभीरु और मुक्ति की अन्वेषणा करने वाला होता है।' उसमें महत्वाकांक्षा नहीं रहती तथा स्वार्थसिद्धि की भावना भी अत्यल्प रह जाती है। योग की दृष्टि से तेजोलेश्या वाले व्यक्ति के आभामण्डल में से कालिमा (काला, नीला, कापोती तथा श्याम वर्ण के sphere में आने वाले बैंगनी. जामनी आदि सभी रंगों की आभा-प्रतिच्छाया) निःशेष हो जाती है और उसके आभामण्डल का रंग अरुण (बाल सूर्य के समान लाल) रंग हो जाता है। ___लाल रंग भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से क्रान्ति-उक्रान्ति का प्रतीक है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह वर्ण स्वास्थ्यप्रद और प्रतिरोधात्मक शक्ति से सम्पन्न होता है। शारीरिक दृष्टि से यह रोगों का विनाशक-स्वास्थ्यप्रद, तथा मानसिक दृष्टि से यह दुर्भावनाओं का अन्त करने वाला एवं आध्यात्मिक दृष्टि से यह अधर्म से धर्म की ओर उन्मुख करने वाला है। साधक जिस समय तेजोलेश्या का, अरुण रंग के संयोगपूर्वक ध्यान करता है तो उसका आभामण्डल अरुणिम होकर अरुणाभ तरंगों का विकीर्ण करने लगता है। उस विकीरण के प्रभाव से उसकी मानसिक दुर्भावनाएँ तो नष्ट होती ही हैं। साथ ही उसका नाड़ी मण्डल और रक्त सक्रिय बनता है। परिणामस्वरूप उसकी ज्ञानवाही नाडियाँ और ज्ञानतन्त और सक्रिय बन जाते हैं। इसके फलस्वरूप उसकी अन्तश्चेतना में ज्ञान के विविध आयाम खुलने लगते हैं। साधक की पाँचों इन्द्रियाँ विशेष रूप से कार्यक्षम और सक्षम हो 1. 2. उत्तराध्ययन 34/27-28 जैन आगमों में कृष्ण, नील, कापोत-इन तीनों लेश्याओं को अधर्म लेश्या कहा गया है तथा इनका फल दुर्गति बताया गया है। वस्तुतः लेश्याध्यान की साधना (आत्मिक उन्नति की साधना की अपेक्षा से) इस तेजोलेश्या से ही प्रारम्भ होती है। यहीं से साधक के जीवन में धर्म का प्रवेश होता है। -सम्पादक * 342 * अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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