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बैंगनी अथवा जामुनी रंग, (2) नीला (गहरा नीला), (3) नीला (आकाश
जैसा नीला), (4) हरा, (5) पीला, (6) नारंगी और (7) लाल।' लेश्याध्यान और रंग चिकित्सा प्रणाली
वस्तुतः जितने भी स्थूल सूक्ष्म स्कंध हैं, वे सभी रंगों और उपरंगों वाले होते हैं। लेकिन रंग हमें 49वें कंपन पर दिखाई देते हैं, इस से कम कंपन पर नहीं। मानव का शरीर और मन भी स्थूल-सूक्ष्म स्कंधों से निर्मित होता है। अतः यह बाहरी रंगों से प्रभावित भी होते हैं। इनमें शुभ रंगों के प्रभाव से व्यक्ति में शुभ भावनाओं का प्रादुर्भाव होता है और अशुभ रंगों से अशुभ भावों का।
यदि एक अपेक्षा से देखा जाए तो अप्रशस्त रंग भी सदैव अप्रशस्त ही नहीं होते। उदाहरण के लिए-नवकार मंत्र के अन्तिम पद 'नमो लोए सव्वसाहूणं' का ध्यान करते हुए साधक साधु पद का कृष्ण वर्णमयी ध्यान करता है किन्तु वहाँ यह कृष्णवर्ण प्रशस्त है, शुभ है। यह कृष्ण (काला रंग) वर्ण अवशोषक है, बाहर से आती हुई अशुभ भावों की तरंगों को रोकता है, अपने अन्दर ही जज्ब कर लेता है, आत्मा तक नहीं पहुँचने देता। साथ ही यह प्रशस्त कृष्ण वर्ण का ध्यान साधक के शरीर और मन को कष्ट-सहिष्ण तथा उपसर्ग-परीषहों को समभाव से सहन करने में सक्षम बना देता है।
इस प्रकार साधु पद के ध्यान में साधक द्वारा ध्येय कृष्ण वर्ण अलग है और कृष्ण लेश्या का कृष्णवर्ण उससे बिल्कुल ही विपरीत अप्रशस्त और अशुभ है। साधु पद के ध्यान के समय का कृष्ण वर्ण कस्तूरी जैसा चमकीला
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आधुनिक विज्ञान Vibgyor के सिद्धान्त को मानता है। इस शब्द का एक-एक अक्षर एक-एक रंग के नाम प्रथम वर्ण है, यथा-v-viloet (बैंगनी), i=indigo (गहरा नीला), b=blue (नीला), g=green (हरा), y=yellow (पीला), o=orange-(नारंगी), rared (लाल)।
विज्ञान श्वेत रंग को नहीं मानता, उसकी मान्यता है कि इन रंगों के संयोग से श्वेत रंग बन जाता है। __ सही स्थिति यह है कि सूर्य किरणें, जो पारे के समान श्वेत होती हैं, उनमें ये सातों रंग prism द्वारा दिखाई देते हैं। किन्तु इन सात रंगों के संयोग से शंख जैसा सफेद रंग नहीं बनता। जबकि जैन दर्शनसम्मत श्वेत रंग शंख के समान सफेद है और वह मूल (original) रंग है, रंगों का मिश्रण नहीं है।
-सम्पादक
*338 अध्यात्म योग साधना