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कारण होता है। वैज्ञानिक इसे मानव विद्युत (Human Electricity) कहते हैं। यह विद्युत भी प्राणमय शरीररूप होती है।
इस प्रकार प्राण शरीर विद्युत रूप में मानव के स्थूल शरीर से अढ़ाई - तीन फुट बाहर तक प्रवाहित रहता है। इसी को आभामंडल कहा जाता है।
मनुष्य ही नहीं, यह आभामंडल' प्राणी मात्र के स्थूल शरीर के चारों ओर विकीर्ण होता है; किन्तु सूक्ष्म पुद्गलों द्वारा निर्मित होने के कारण
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आभामंडल (aura) और प्रभामंडल (Halo) में बहुत अन्तर है। आभामंडल तो प्राणशरीर से विकीर्ण होने वाली विद्युत् तरंगों से बनता है। इसमें रंग भी होते हैं और वे रंग भावनाओं तथा आवेग संवेग के अनुसार बदलते भी रहते हैं। यह आभामंडल संपूर्ण शरीर के आकार का तथा मानव शरीर से 21/1⁄2 -3 फुट तक बाहर निःसृत होता रहता है। मानव ही नहीं, प्राणीमात्र, यहाँ तक वृक्षों और फूल-पत्तियों में भी आभामंडल होता है।
किन्तु प्रभामंडल केवल पवित्रात्माओं में ही बनता है । यह सिर्फ सिर के पीछे की ओर गोलाकार रूप में होता है। इसका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला होता है तथा यह वर्ण स्थायी होता है, कभी बदलता नहीं। साथ ही यह वर्ण इतना स्पष्ट होता है। कि चर्मचक्षुओं से भी देखा जा सकता है। भगवान महावीर, राम, कृष्ण, बुद्ध, ईसा आदि के सिरों के पीछे जो प्रकाशवलय तस्वीरों आदि में दिखाया जाता है, वह प्रभामंडल ही है, जिसे साधारण भाषा में 'भामंडल' भी बोल दिया जाता है।
प्रभामण्डल की उत्पत्ति उन्हीं पवित्रात्माओं के होती है जो आध्यात्मिक उन्नति की चरम स्थिति पर पहुँच जाते हैं। योग की दृष्टि से जिस योगी का अन्तिम यानी सहस्त्रार चक्र अनुप्राणित हो जाता है उसी के यह प्रभामण्डल बनता है ।
योगी साधक आज्ञा चक्र जागृत करने के उपरान्त अपनी शक्ति का प्रवाह जब और ऊँचा चढ़ाता है तब वह शक्ति ऊर्ध्वमुखी गति से मनश्चक्र को जाग्रत करती है और आगे बढ़कर सोमचक्र को अनुप्राणित करती है। इस सोमचक्र के जागृत होते ही साधक को कोटिसूर्यसम आत्मिक तेज दिखाई देने लगता है। यह असाधारण प्रकाश ही पुंजीभूत होकर प्रभामण्डल का निर्माण करता है और जब साधक का ब्रह्मरन्ध्र स्थित सहस्रार चक्र अनुप्राणित हो जाता है तो वह अति आनन्ददायक और प्रभावशाली प्रकाश सहस्र - सहस्र रश्मियों के रूप में बाहर की ओर बह निकलता है। सहस्रार चक्र (कमल) में हजार दल (पंखुड़ियाँ) हैं और इन सभी से प्रकाश प्रस्फुटित होता है। यही प्रकाश योगी के सिर के पीछे वृत्ताकार रूप में दिखाई देता है, जिसे प्रभामण्डल कहते हैं।
* लेश्या - ध्यान साधना 335