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यों तो हठयोग तथा अन्य यौगिक ग्रंथों में 84 प्रकार के आसन बताये गये हैं, और वैसे देखा जाए तो आसनों के अनगिनत प्रकार हैं; किन्तु योग साधना में सहकारी कुछ ही आसन हैं। उनमें से प्रमुख आसन ये हैं-(1) पर्यंकासन, (2) वीरासन, (3) वज्रासन, (4) पद्मासन, (5) भद्रासन (6) दंडासन, (7) उत्कटिकासन, (8) गोदोहिकासन, (9) कायोत्सर्गासन।'
(1) पर्यंकासन-दोनों जंघाओं के निचले भाग पैरों के ऊपर रखने पर तथा दाहिना और बाँया हाथ नाभि के पास दक्षिण-उत्तर में रखने से पर्यंकासन होता है। ___ (2) वीरासन-बायां पैर दाहिनी जाँघ पर और दाहिना पैर बायीं जांघ पर जिस आसन में रखा जाता है, वह वीरासन है।
वीरासन का दूसरा प्रकार यह है-कोई पुरुष सिंहासन पर बैठा हो और उसके पीछे से सिंहासन हटा लिया जाय तब उसकी जो आकृति बनती है, वह वीरासन है। __. (3) वज्रासन-वीरासन करने के उपरान्त वज्र की आकृति के समान दोनों हाथ पीछे रखकर, दोनों हाथों से पैर के अंगूठे पकड़ने पर जो आकृति बनती है, वह वज्रासन है। कुछ आचार्य इसे बेतालासन भी कहते हैं।
(4) पद्मासन-एक जाँघ के साथ दूसरी जाँघ को मध्य भाग में मिलाकर रखना पद्मासन है।
(5) भद्रासन-दोनों पैरों के तलभाग वृषण प्रदेश में-अंडकोषों की जगह एकत्र करके, उसके ऊपर दोनों हाथों की अंगुलियाँ एक-दूसरी अंगुली में डालकर रखना, भद्रासन है।
(6) दण्डासन-भूमि पर बैठकर इस प्रकार पैर फैलाना कि अंगुलियाँ, गुल्फ और जाँघे जमीन से लगी रहें, दण्डासन है। ___(7) उत्कटिकासन-भूमि से लगी हुई एड़ियों के साथ जब दोनों नितम्ब मिलते हैं तब उत्कटिकासन होता है।
(8) गोदोहिकासन-जब एड़ियाँ जमीन से लगी हुई नहीं होती और नितंब एडियों से मिलते हैं तब गोदोहिकासन होता है।
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इन आसनों का वर्णन योगशास्त्र, प्रकाश 4, श्लोक 124-134 में है।
* प्राण-शक्ति : स्वरूप, साधना, विकास और उपलब्धियाँ * 319 *