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मनो यस्य वशे तस्य, भवेत्सर्वं जगद्वशे।
मनसस्तु वशे योऽस्ति
स सर्वजगतो वशे ॥
- जिस साधक का मन उसके वश में होता है, उसके वश मैं सारा संसार हो जाता है। इसके विपरीत जो मन के वश में होता है, वह सारे संसार के वश में हो जाता है।
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मन के सधने से खुलें, शक्ति के सब द्वार । है सुख - इच्छुक के लिए,
उत्तम यह उपचार ॥
* 314 अध्यात्म योग साधना