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________________ चातुर्गतिक संसार, द्रव्यों के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य, लोक की शाश्वतता-अशाश्वतता, द्रव्य की परिणामिनित्यत्वता, देव-मनुष्य-नारक-तिर्यंच चतुर्गति और लोक के ऊर्ध्व, अधो एवं तिर्यग् भाग आदि का चिन्तन करता है। उक्त विषयों पर ध्यान केन्द्रित करता है तथा इस प्रकार आत्म-विशुद्धि करता है।' धर्मध्यान के आलम्बन __ अपने निश्चित ध्येय तक पहुँचने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आलम्बन की आवश्यकता पड़ती है। धर्मध्यान के साधक को भी इसी प्रकार आलम्बन आवश्यक है। धर्मध्यान के आलम्बन चार हैं-(1) वाचना, (2) पृच्छना, (3) परिवर्तना और (4) धर्मकथा। ये चारों स्वाध्याय तप के भी भेद हैं किन्तु स्वाध्याय से ध्यान में इतनी विशेषता है कि इनमें गहराई अधिक होती है और एकनिष्ठता का भी समावेश हो जाता है। स्वाध्याय तप में तो ये स्वाध्याय के अंग हैं और ध्यान तप में ये आलम्बन हैं। इन आलम्बनों के सहारे ध्यानयोगी ध्यान में प्रवेश और प्रगति करता है। धर्म ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ अनुप्रेक्षा का अर्थ है-गहराईपूर्वक चिन्तन करना और उस चिन्तन में तल्लीन हो जाना। धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ हैं-(1) एकत्वानुप्रेक्षा, (2) अनित्यानुप्रेक्षा, (3) अशरणानुप्रेक्षा और (4) संसारानुप्रेक्षा। इन अनुप्रेक्षाओं का ध्यानयोग के सन्दर्भ में विशेष महत्त्व है। अनुप्रेक्षायोग की साधना में तो साधक चिन्तन-मनन तक ही सीमित रहता है। किन्तु 1. भगवान महावीर की ध्यानचर्या का वर्णन करते हुए बताया गया है अविझाइ से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाणं। उड्ढं अहे तिरियं च, पेहमाणे समाहिपडिन्ने।। -आचारांग अ. 9, उ. 4, सूत्र 108 भगवान महावीर ध्यान के योग्य आसन पर निश्चलरूप से स्थर होकर ऊर्ध्व, अधः और तिर्यक् लोकगत जीवाजीव पदार्थों का द्रव्य-पर्यायरूप से चिन्तन करते और आत्मशुद्धि का निरीक्षण करते थे। अनुप्रेक्षाओं का विस्तृत विवेचन इसी पुस्तक के 'भावना योग साधना' नामक अध्याय में किया गया है। -सम्पादक 2 * 286 * अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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