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________________ जैन आगमों के अनुसार, अनाहार भी तपस्या है और कम खाना भी तपस्या है; कायोत्सर्ग भी तप है और ध्यान भी तप है; इन्द्रिय-संयम भी तप है और आसन भी तप है। अन्तःकरण अथवा चित्तशोधन की क्रिया भी तप है और स्वाध्याय तथा विनय की अन्तरंग वृत्ति भी तप है। सेवा भी तप है। इस प्रकार तप का आयाम, जैन आगमों के अनुसार बहुत ही व्यापक है। इन तपों में अनाहार अथवा अनशन, तप का पहला प्रकार है और व्युत्सर्ग अन्तिम। दूसरे शब्दों में, तप का प्रारम्भ आहार के विसर्जन से होता है और अन्त देह अथवा शरीर के प्रति अहंता तथा कषाय, संसार एवं कर्म के विसर्जन में होता है। तप के भेद-प्रभेदों का विस्तृत वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र' में किया गया है। तप के प्रमुख भेद दो हैं-(1) बाह्य तप और (2) आभ्यन्तर तप। बाह्य तप छह प्रकार का है-(1) अनशन, (2) ऊनोदरी (अवमौदर्य), (3) भिक्षाचरी (वृत्तिपरिसंख्यान), (4) रस-परित्याग, (5) कायक्लेश और (6) विविक्त शयनासन (प्रतिसंलीनता)। । आभ्यन्तर तप छह प्रकार का है-(1) प्रायश्चित, (2) विनय, (3) वैयावृत्य, (4) स्वाध्याय, (5) ध्यान और (6) व्युत्सर्गी' विभाजन के कारण यद्यपि तप तो एक ही है और उसका लक्ष्य है-आत्म-शोधन, किन्तु प्रक्रियाओं के आधार पर ये बारह भेद किये गये हैं। साथ ही भाव बिना तप का आध्यात्मिक दृष्टि से कोई मूल्य नहीं है, सिर्फ कायाकष्ट अथवा दिखावा मात्र है, इनसे शारीरिक अथवा मानसिक लाभ तो हो सकता हैं किन्तु आत्मिक लाभ नहीं होता और भाव का अभिप्रेत आत्मिक भाव हैं जो अन्तर् जगत की ही वस्तु हैं; फिर भी तप के आभ्यन्तर और बाह्य दो भेद किये गये हैं। इस विभाजन के समुचित कारण हैं। अनशन आदि छह तपों की परिगणना बाह्य तपों में की गयी है, उसके कारण हैं (1) बाह्य तप का प्रभाव शरीर पर अधिक पड़ता है। 1. उत्तराध्ययन सूत्र 30/7-36 2. अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशाबाह्यं तपः। -तत्त्वार्थ सूत्र 9/19 3. प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम्। -तत्त्वार्थ सूत्र 9/20 *234 * अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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