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________________ करता है और अवचेतन मन से चेतन मन। जिस प्रकार औदारिक शरीर मनोवेगों और ग्रन्थियों के प्रगटीकरण का माध्यम है उसी प्रकार चेतन मन भी माध्यम है। अवचेतन मन में रही हुई ग्रन्थियाँ कोई भी निमित्त पाकर अथवा अवकाश के क्षणों में चेतन मन पर उभर आती हैं। आपका किसी ने अपमान कर दिया। उस समय किसी विवशता के कारण आपको वह अपमान कड़वे घूँट के समान पीना पड़ा; किन्तु बदले की भावना मन में घर कर गई। चेतन मन से अवचेतन मन में चली गई। अब आपको हर समय उसकी याद नहीं आती। वह ग्रन्थि बन गई है। और अवचेतन मन की गहराई में उतर गई है तो याद कैसे आये। क्योंकि आप काम तो चेतन मन से करते हैं। अपने व्यापार-धन्धे में लगे रहते हैं, आफिस जाते हैं, दूकान चलाते हैं, मिल चलाते हैं। लेकिन जब कभी बातचीत के दौरान उस व्यक्ति की चर्चा चल पड़ती है, अथवा वह दिखाई दे जाता है तो आपकी वह बदले की भावना- बदले की मनोग्रन्थि उभर कर चेतन मन में आ जाती है और आप तिलमिला उठते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आप अवकाश के क्षणों में बैठे हैं, काम कोई है नहीं। आप निश्चल बैठे हैं, या पलंग पर लेटे हैं लेकिन आपका मन न तो कभी निश्चल बैठता है और न लेटता ही है, वह तो हमेशा चंचल रहता है, भाँति-भाँति के विचार उसमें दौड़ते रहते हैं, उस विचार प्रवाह में यदि वह घटना स्मृति पटल पर तैर गई - अवचेतन मन से चेतन मन के प्रवाह में आ गई तो भी आप तिलमिला उठेंगे, बदले की आग में जल उठेंगे। तो निष्कर्ष यह है कि मनोग्रन्थियाँ अवचेतन मन में रहती हैं और कोई निमित्त पाकर या अवकाश के क्षणों में चेतन मन में उभर आती हैं। आधुनिक सभ्यता का उपहार : विभिन्न ग्रन्थियां आधुनिक युग में मानव सभ्य तो हुआ है, वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण उसे विभिन्न प्रकार की सुख-सुविधाओं के साधन भी प्राप्त हुए हैं, वह शिक्षित भी हुआ है; किन्तु इस सभ्यता के उपहारस्वरूप मिली हैं उसे विभिन्न प्रकार की मनोग्रन्थियाँ | यदि मनोविज्ञान की भाषा में कहा जाये तो आधुनिक युग का मानव अनेक प्रकार की ग्रन्थियाँ अपने अन्तर्मानस में पाले हुए है। हीनभावना, 182 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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